Mahakaleshwar Jyotirlinga Story : महाकाल का दूल्हा स्वरूप दर्शन करता है हर मनोकामना पूरी

Mahakaleshwar Jyotirlinga Story : महाकाल का दूल्हा स्वरूप दर्शन करता है हर मनोकामना पूरी

Authored By: स्मिता

Published On: Monday, February 17, 2025

Updated On: Tuesday, February 18, 2025

महाकाल के दूल्हा स्वरूप के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है
महाकाल के दूल्हा स्वरूप के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है

ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन) में शिव नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका है. इस दौरान बाबा महाकाल का नौ दिनों तक दूल्हे के रूप में शृंगार किया जाता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति बाबा महाकाल के इस दूल्हा स्वरूप का नौ दिनों तक लगातार दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जानते हैं इसके पीछे का कारण और महाकाल मंदिर की पौराणिक कथा (Mahakaleshwar Jyotirlinga Story).

Authored By: स्मिता

Updated On: Tuesday, February 18, 2025

विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) में शिव नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका है. दरअसल, भगवान महाकाल के आंगन में शिवरात्रि का पर्व नौ दिन तक चलता है, जिसे शिव नवरात्रि के रूप में जाना जाता है. इस दौरान बाबा महाकाल का नौ दिनों तक दूल्हे के रूप में शृंगार किया जाता है. मान्यता है कि शिव विवाह के तहत भगवान को इन नौ दिनों तक हल्दी का उबटन लगाया जाता है. महाशिवरात्रि पर्व पर रात्रि को महापूजन के बाद अगली सुबह पुष्प मुकुट श्रृंगार किया जाता है. इसमें सवा मन फूल से मुकुट तैयार किया जाता है. जानते हैं इसके पीछे के कारण और महाकाल मंदिर की पौराणिक कथा (Mahakaleshwar Jyotirlinga Story).

भगवान महाकाल को हल्दी का उबटन (Mahakal Turmeric Ubtan)

महाकालेश्वर मंदिर ( (Mahakaleshwar Mandir) के शासकीय पुजारी पं. घनश्याम शर्मा ने बताया, ‘महाशिवरात्रि के नौ दिन पूर्व मंदिर में शिवनवरात्रि पर्व का शुरुआत होती है. महाकाल मंदिर में प्रात: भगवान महाकाल को हल्दी का उबटन लगाया जाता है. इसके बाद कोटेश्वर महादेव का अभिषेक किया जाता है. आरती के बाद भगवान महाकाल का पूजन प्रारंभ होता है. महाकालेश्वर भगवान का पूजन 11 पुजारियों द्वारा एकादश रूद्राभिषेक से सभी नौ दिनों तक किया जाता है. प्रात: 10.30 बजे भोग आरती होती है. दोपहर तीन बजे भगवान का संध्या पूजन, श्रृंगार और नये वस्त्र-आभूषण धारण करवाए जाते हैं. भगवान संध्या समय में प्रतिदिन नए स्वरूप में दर्शन देते हैं. यह क्रम 25 फरवरी तक चलेगा.

भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना का विधान (Lord Shiva and Parvati Pujan)

फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (26 February 2025) पर महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2025) मनाई जाती है. इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है. महाशिवरात्रि पर्व 26 फरवरी को मनाया जाएगा. इस दिन रात्रि में महापूजन सम्पन्न हो जाता है. 27 फरवरी को प्रात: पुष्प मुकुट से श्रृंगार होता है और दोपहर 12 बजे वर्ष में एक बार होने वाली भस्म आरती होती है.ऐसा माना गया है कि जो व्यक्ति बाबा महाकाल के इस दूल्हा स्वरूप का नौ दिनों तक लगातार दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शिव नवरात्रि के प्रथम दिन भगवान कोटेश्वर की पूजा की जाती है और उनका अभिषेक किया जाता है.

महाकालेश्वर मंदिर की विशेषता (Mahakaleshwar Mandir Significance)

मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह भारत के 18 महाशक्तिपीठों में से एक है. अभिलेखों के अनुसार, मंदिर के महाकाल लिंग को स्वयंभू (स्वयं प्रकट) माना जाता है. महाकालेश्वर की मूर्ति दक्षिण की ओर मुख किए हुए है, जो देश के अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग है.मंदिर का निर्माण शिव के भक्त राजा चंद्रसेन ने करवाया था. मंदिर को गुलाम वंश के तीसरे शासक इल्तुतमिश ने 13वीं शताब्दी की शुरुआत में ध्वस्त कर दिया था. मंदिर का पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में सुखतनाकर रामचंद्र बाबा शेनवी ने करवाया था.

क्या है महाकालेश्वर मंदिर की कथा (Mahakaleshwar Mandir Mythological Story)

एक बार अवंतिका में एक ब्राह्मण रहता था. उसके चार बेटे थे, जो भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे. दूषण नामक राक्षस सभी अच्छे और धार्मिक कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहा था. देश भर से ब्राह्मण चारों बेटों के साथ एकत्र हुए और भगवान शिव की पूजा की. जब दूषण ने अवंतिका पर आक्रमण किया, तो जमीन फट गई और शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए और राक्षसों को भस्म कर दिया. एक कथा यह भी है कि श्रीकर नाम के एक युवा लड़के ने एक पत्थर को शिव के रूप में पूजा और शिव महाकाल वन में एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए. शिवभक्त रावण ने लिंगम को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन शिव ने इसे कुचल दिया और इसके टुकड़े छोड़ दिए जो ज्योतिर्लिंग बन गए.

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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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