Nageshwar Jyotirlinga: कैसे बना नागेश्वर ज्योतिर्लिंग? जानिए इतिहास, रहस्य और आस्था की कहानी

Nageshwar Jyotirlinga: कैसे बना नागेश्वर ज्योतिर्लिंग? जानिए इतिहास, रहस्य और आस्था की कहानी

Authored By: Nishant Singh

Published On: Tuesday, July 15, 2025

Last Updated On: Tuesday, July 15, 2025

About the Nageshwar Jyotirlinga
About the Nageshwar Jyotirlinga

Nageshwar Jyotirlinga Gujrat: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात के द्वारका के पास स्थित एक प्राचीन और दिव्य शिव मंदिर है, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इसे भगवान शिव के "नागों के स्वामी" रूप का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां शिव ने भक्त सुप्रिया की रक्षा के लिए प्रकट होकर दुष्ट दानवों का संहार किया था. मंदिर की विशेष वास्तुकला, दक्षिणमुखी लिंग और विशाल शिव प्रतिमा इसे अद्वितीय बनाती है. यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहां भक्ति, शांति और आस्था की ऊर्जा हर दिशा में महसूस की जा सकती है.

Authored By: Nishant Singh

Last Updated On: Tuesday, July 15, 2025

इस लेख में:

भारत की पवित्र भूमि पर स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका के पास दारुकावन नामक स्थान पर स्थित है. यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत संगम भी है. नागेश्वर का अर्थ है- “सर्पों के ईश्वर”, जो भगवान शिव के एक दिव्य रूप को दर्शाता है. यह स्थान शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यहां की कथा, शक्ति और वातावरण आत्मा को शांति और ऊर्जा से भर देता है. प्राचीन मान्यताओं और अद्भुत वास्तुशिल्प से सुसज्जित यह मंदिर, श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा, एक ऐसी आध्यात्मिक अनुभूति है, जो जीवन भर स्मरणीय रहती है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का परिचय

  • स्थान: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के द्वारका शहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर, सौराष्ट्र क्षेत्र के दारूकावन में स्थित है.
  • महत्त्व: यह भगवान शिव के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में दसवें स्थान पर आता है.
  • विशेषता: नागेश्वर का अर्थ है ‘नागों का ईश्वर’, जो शिव के गले में सर्प के रूप में विराजमान रहते हैं.
  • अन्य मान्यताएं: कुछ विद्वानों के अनुसार नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के अन्य स्थान भी बताए जाते हैं, जैसे महाराष्ट्र का हिंगोली और उत्तराखंड का जागेश्वर, किंतु प्राचीन ग्रंथों और शिव पुराण के अनुसार इसका प्रामाणिक स्थान गुजरात का दारूकावन ही माना गया है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

About the Nageshwar Jyotirlinga

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना और उसकी महिमा से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कथा इस प्रकार है:

  • दारुक और सुप्रिया की कथा
    दारुकावन नामक वन में दारुक और उसकी पत्नी दारुका नामक राक्षस निवास करते थे. दारुका ने माता पार्वती की तपस्या कर वरदान प्राप्त किया और पूरे वन पर नियंत्रण कर लिया. एक दिन, शिव भक्त सुप्रिया को वह बंदी बनाकर ले आए. बंदीगृह में सुप्रिया ने “ॐ नमः शिवाय” का जाप आरंभ किया. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वहां प्रकट होकर दारुक और उसके अनुचरों का संहार किया. शिव ने वहां लिंग रूप में स्वयं को स्थापित किया, जिसे “नागेश्वर ज्योतिर्लिंग” कहा गया. इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि सच्ची भक्ति संकट में भी भगवान को बुला सकती है और वह अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते हैं.
  • शिव का अग्निस्तंभ रूप
    एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच यह विवाद हुआ कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है. तभी वहां शिवजी ने अग्नि के एक विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर चुनौती दी कि जो भी इस स्तंभ की शुरुआत या अंत खोज सके, वही श्रेष्ठ होगा. ब्रह्मा ऊपर की ओर गए और विष्णु नीचे की ओर, पर कोई अंत न मिला. विष्णु ने सत्य स्वीकार किया, जबकि ब्रह्मा ने झूठ बोला. इससे क्रोधित होकर शिव ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा पृथ्वी पर नहीं होगी. यह अग्नि स्तंभ ही आगे चलकर ‘ज्योतिर्लिंग’ कहलाया. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी उसी अनंत प्रकाश का प्रतीक है, जो शिव के परम रूप को दर्शाता है.
  • बालखिल्य ऋषियों की तपस्या
    प्राचीन समय में दारुकावन में कई ऋषि तपस्या में लीन थे. वे अपने तप को ही सबसे बड़ा मानते थे और आत्मअहंकार में डूबे हुए थे. भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए नग्न योगी रूप में वहां प्रवेश किया. ऋषियों की पत्नियां शिव की ओर आकर्षित हो गईं, जिससे ऋषि क्रोधित हुए और उन्होंने शिव पर श्राप दे दिया कि उनका लिंग पृथ्वी पर गिर जाए. तभी वह लिंग पृथ्वी पर गिरा और धरती कांप उठी. देवताओं ने विनती की, तब शिव ने उस लिंग को पुनः स्थापित कर ज्योति का रूप दिया. यही लिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहलाया. यह कथा शिव की लीला, अहंकार विनाश और भक्ति की महत्ता को दर्शाती है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का ऐतिहासिक महत्त्व

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का ऐतिहासिक महत्त्व धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह ज्योतिर्लिंग प्राचीन काल से ही शिव भक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है. माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां भगवान शिव ने भक्त सुप्रिया की रक्षा के लिए स्वयं प्रकट होकर राक्षस दारुक का संहार किया था. स्कंद पुराण और शिव पुराण में इसका उल्लेख मिलता है, जो इसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता को सिद्ध करता है. यह मंदिर दारुकावन क्षेत्र में स्थित है, जो कभी ऋषियों की तपस्थली हुआ करता था. नागेश्वर लिंग का विशेष स्वरूप – दक्षिणमुखी और स्वयंभू – इसे और अधिक पावन बनाता है. वर्षों से यह स्थल हजारों श्रद्धालुओं के लिए आस्था, शक्ति और मुक्ति का प्रतीक बना हुआ है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्त्व

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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्त्व अत्यंत गहरा और व्यापक है. यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो शिव के “नागेश्वर” यानी नागों के स्वामी रूप को दर्शाता है. मान्यता है कि इस स्थान पर पूजा करने से भक्तों के सभी भय और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं. विशेष रूप से यह ज्योतिर्लिंग ‘सर्प दोष’, कालसर्प योग और मनोविकारों को शांत करने के लिए पूजित है. शिव भक्तों के अनुसार, यहां दर्शन मात्र से जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और बिल्वपत्र अर्पण जैसे अनुष्ठान भक्तों को शिव की कृपा प्रदान करते हैं. महाशिवरात्रि और सावन मास में यहां विशाल धार्मिक आयोजन होते हैं, जो इसकी धार्मिक ऊर्जा को और बढ़ाते हैं.

पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का दैनिक पूजा क्रम:

  • मंगल आरती – दर्शनों की शुरआत भोर में.
  • श्रृंगार पूजा – फूल, चंदन, भस्म से लिंग का श्रृंगार .
  • बिल्व आर्चना – पवित्र बेलपत्र से शिवलिंग की आराधना .
  • रुद्राभिषेक – दूध, दही, घी, शहद, जल से शिवलिंग अभिषेक .
  • संध्या-आरती – दीप, घंटी, मंत्रों के साथ शाम के पूजन .

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की वास्तुकला

  • नागेश्वर मंदिर आधुनिक शैली में निर्मित है, जिसमें प्राचीनता और नवीनता का सुंदर संगम दिखाई देता है.
  • मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही विशाल शिव प्रतिमा दिखाई देती है, जिसकी ऊंचाई लगभग 25 मीटर है.
  • गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थित है, जिसे भक्तगण जल, दूध, बेलपत्र आदि अर्पित करते हैं.
  • मंदिर परिसर में अनेक छोटे-बड़े मंदिर, यज्ञशाला, और धर्मशालाएं भी हैं, जहां श्रद्धालु ठहर सकते हैं.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े प्रमुख पर्व और उत्सव

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  • महाशिवरात्रि: इस दिन मंदिर में विशेष पूजा, रुद्राभिषेक और भव्य मेले का आयोजन होता है.
  • श्रावण मास: सावन के महीने में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए यहां आते हैं.
  • नित्य आरती: मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 5 बजे और सायं 7 बजे आरती होती है, जिसमें डमरू, घड़ियाल, शंख और ढोल की ध्वनि से वातावरण शिवमय हो जाता है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुचें ?

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के कई तरीके हो सकते हैं. यहां कुछ सामान्य तरीके दिए गए हैं:

  • हवाई मार्ग (By Air): नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने का सबसे सरल तरीका हवाई मार्ग हो सकता है. नागेश्वर के पास स्थित जामनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम हो सकता है, जिससे आप आ सकते हैं. इसके बाद, आप टैक्सी या बस का सहारा ले सकते हैं.
  • रेल मार्ग (By Train): नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तक रेल मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है. नागेश्वर के पास स्थित द्वारका रेलवे स्टेशन निकटतम हो सकता है, जिससे आप आ सकते हैं. इसके बाद, आप टैक्सी, ऑटोरिक्शा, या बस का सहारा ले सकते हैं.
  • सड़क मार्ग (By Road): नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है. अपने गाड़ी के साथ, आप द्वारका से टैक्सी, बस, या खुद की गाड़ी का इस्तेमाल करके जा सकते हैं.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रोचक बातें

  • यह ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है, अर्थात् इसकी स्थापना किसी मनुष्य ने नहीं की, बल्कि यह स्वयं प्रकट हुआ.
  • मंदिर परिसर में एक विशाल शिव प्रतिमा है, जो दूर से ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है.
  • यहां की पौराणिक गाथाएं, लोककथाएं और आध्यात्मिक वातावरण हर भक्त के मन में श्रद्धा और रोमांच का संचार करते हैं.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के अन्य संभावित स्थल

  • महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के अवढा गांव में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग होने का दावा किया जाता है.
  • उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पास जागेश्वर में भी एक मंदिर है, जिसे कुछ लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं.
  • किंतु शिवपुराण और द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति के अनुसार गुजरात का दारूकावन ही इसका प्रामाणिक स्थल है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: श्रद्धा, रहस्य और रोमांच

About the Nageshwar Jyotirlinga

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रत्येक पत्थर, हर कथा और हर प्राचीर शिवभक्ति की गहराई को दर्शाता है. यहां का वातावरण, मंत्रोच्चार, घंटियों की ध्वनि और भक्तों की आस्था मिलकर एक ऐसा दिव्य अनुभव रचते हैं, जिसे शब्दों में बांधना कठिन है.
यहां आकर हर व्यक्ति अपने भीतर के विष (द्वेष, अहंकार, भय) को त्यागकर शिवमय हो जाता है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष और शिव के सान्निध्य का अनुभव है.

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के उन दुर्लभ तीर्थों में से है, जहां इतिहास, पौराणिकता, आस्था और अध्यात्म एक साथ मिलते हैं. यहां की हर कथा, हर परंपरा और हर उत्सव शिवभक्ति का जीवंत उदाहरण है. यदि आप जीवन में एक बार भी इस पावन स्थल पर पहुंचते हैं, तो निश्चित ही आपके मन, मस्तिष्क और आत्मा में शिवत्व का संचार होगा.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग – जहां शिव स्वयं अपने भक्तों के कष्ट हरते हैं, जहां हर सांस में ‘ॐ नमः शिवाय’ गूंजता है, और जहां हर भक्त को मिलता है मोक्ष का मार्ग.
शिव की महिमा, नागेश्वर की गरिमा – यही है भारत की सनातन संस्कृति का सार!

FAQ

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के द्वारका नगर से लगभग 17–18 किलोमीटर दूर, सौराष्ट्र तट पर स्थित है. यह मंदिर अरब सागर के किनारे दारुकावन क्षेत्र में स्थित है.

‘नागेश्वर’ का अर्थ है “नागों के ईश्वर”. यह नाम शिव के उस रूप को दर्शाता है, जिसमें वे सर्पों के स्वामी हैं. यह शिव का विशेष रुद्र रूप माना जाता है.

यह मंदिर दक्षिणमुखी है, और इसका शिवलिंग त्रिमुखी है. मंदिर परिसर में 25 मीटर ऊंची भगवान शिव की भव्य मूर्ति भी स्थित है, जो इसकी भव्यता को बढ़ाती है.
मुख्य कथा के अनुसार, भक्त सुप्रिया की रक्षा के लिए भगवान शिव ने राक्षस दारुक का वध किया और वहीं प्रकट होकर लिंग रूप में स्थापित हुए. यही स्थान नागेश्वर कहलाया.
यहां रुद्राभिषेक, बिल्वपत्र अर्पण, महामृत्युंजय जाप, श्रृंगार पूजन और आरती जैसे प्रमुख पूजन होते हैं. विशेष रूप से महाशिवरात्रि पर हजारों भक्त पूजा करते हैं.
अक्टूबर से मार्च का समय यात्रा के लिए उपयुक्त माना जाता है. सावन मास और महाशिवरात्रि पर विशेष भीड़ और भक्ति का माहौल होता है.
नजदीकी रेलवे स्टेशन द्वारका और ओखा हैं. निकटतम हवाई अड्डे जमनगर और पोरबंदर हैं. द्वारका से टैक्सी या बस द्वारा मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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निशांत कुमार सिंह एक पैसनेट कंटेंट राइटर और डिजिटल मार्केटर हैं, जिन्हें पत्रकारिता और जनसंचार का गहरा अनुभव है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए आकर्षक आर्टिकल लिखने और कंटेंट को ऑप्टिमाइज़ करने में माहिर, निशांत हर लेख में क्रिएटिविटीऔर स्ट्रेटेजी लाते हैं। उनकी विशेषज्ञता SEO-फ्रेंडली और प्रभावशाली कंटेंट बनाने में है, जो दर्शकों से जुड़ता है।
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