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परमात्मा शिव के ज्ञान, गुण व शक्तियों को अपने जीवन में सकते हैं उतार
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, July 30, 2025
Last Updated On: Wednesday, July 30, 2025
आध्यात्मिक गुरु बी के शिवानी कहती हैं, 'स्वयं को ईश्वर तो नहीं माना जा सकता है. ईश्वर के ज्ञान, गुण और उनकी शक्तियों को अपने जीवन में उतार कर ईश्वर के समान बना जा सकता है.'
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Wednesday, July 30, 2025
शिवजी का प्रिय माह है सावन. (Shiv Wisdom for Life) इसलिए इस महीने में शिवजी के भक्तगण उनकी विशेष प्रार्थना-अर्चना करते हैं. श्रावण महीने में सोमवार को शिवजी के लिए विशेष व्रत-उपवास रखा जाता है. इस वर्ष श्रावण माह के 3 सोमवार बीत चुके हैं. चौथा और अंतिम सोमवार 4 अगस्त को है. सोमवारी के दिन हम न सिर्फ शिवजी की अराधना करते हैं, बल्कि शिव के हमारे जीवन में महत्व और इसके अर्थ को भी जानने की कोशिश करते हैं. श्रावण के अंतिम सोमवार (4 अगस्त) के अवसर पर आइये जानते हैं शिवजी के बारे में ब्रह्मा कुमारी शिवानी क्या बताती हैं.
हम शिव से दूर नहीं हो सकते हैं
ब्रह्मा कुमारी शिवानी के अनुसार, शिवोहम का अर्थ यह नहीं कि हम ही शिव हैं. हम शिव नहीं, किंतु शिवत्व से दूर नहीं हो सकते हैं. शिव के शिवत्व अर्थात उनके दिव्य ज्ञान, गुण और शक्तियां हमारे ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार हैं. यह सच है कि आदमी खुद को ईश्वर नहीं कह सकता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति ईश्वर नहीं है. यदि कोई स्वयं को ईश्वर मान लेता है, तो यह उसका संस्कार है. कोई भी व्यक्ति ईश्वर नहीं हो सकता है, लेकिन ईश्वर के गुणों को अपने जीवन में उतारकर उनके जैसा तो बन सकता है. यदि वह ऐसा कर लेता है, तो वह सत्ययुग में जीने का अधिकारी हो सकता है.
शिव हम सभी के परमपिता
शिव तो ईश्वर हैं, एक हैं, वे निराकार परमात्मा हैं. हम सब मनुष्य आत्माओं के रूहानी पिता परमपिता हैं. उनके आत्मिक संतान होने के कारण हिन्दू, मुस्लिम, शिख, ईसाई आदि सभी धर्म के लोग आत्मिक दृष्टि से आपस में भाई- भाई हैं. परमात्मा शिव रूहानी ज्ञान, सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता एवं शक्ति के सागर हैं. हम उनके इन शाश्वत गुणों के स्वरूप हैं.
प्रेम, शांति और ज्ञान के स्रोत हैं शिव
निराकार परमात्मा शिव प्रेम, शांति और ज्ञान के स्रोत हैं. आम लोग राजयोग ध्यान के माध्यम से शिव से जुड़ सकते हैं. शिव की पवित्रता, शांति और प्रेम के गुणों को अपने दैनिक जीवन में अपना सकते हैं. आत्मनिरीक्षण और सकारात्मक सोच के माध्यम से आत्म-परिवर्तन किया जा सकता है, जो बाद में अधिक शांतिपूर्ण और पूर्ण जीवन की ओर ले जाता है.
सृष्टि में आ सकती है सर्वत्र शांति
सभी को मौलिक आध्यात्मिक सत्य का बोध होना चाहिए. यदि ऐसा होता है, तो जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, राज्य एवं राष्ट्र वाद पर आधारित समस्त भेदभाव, घृणा, द्वेष, शत्रुता और हिंसा आदि असद आचरण अवश्य समाप्त हो सकता है. सृष्टि में सर्वत्र शांति, स्नेह, सद्भावना, विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम का वैश्विक वातावरण निर्मित हो सकता है.