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बिहार में कितने हैं निषाद वोटर्स? दावों और आंकड़ों के बीच सच्चाई क्या है?
बिहार में कितने हैं निषाद वोटर्स? दावों और आंकड़ों के बीच सच्चाई क्या है?
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, April 22, 2025
Updated On: Tuesday, April 22, 2025
बिहार की राजनीति में निषाद समुदाय को लेकर लगातार दावे और चर्चाएं होती रही हैं. विशेषकर विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) ने कई बार यह दावा किया है कि बिहार में निषाद समुदाय के वोटर्स की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक है.अब मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) ने 51 मेधावी छात्रों को स्कॉलरशिप देने की घोषणा करके चर्चा को और बल दे दिया है.अब युवाओं को लुभाने के लिए एक नई सामाजिक रणनीति अपनाई है. उन्होंने घोषणा की है कि उनकी पार्टी अब मेधावी लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को स्कॉलरशिप देगी, जिससे वे उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हो सकें.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Tuesday, April 22, 2025
Nishad vote bank Bihar : विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने घोषणा की है कि वे निषाद समाज के 51 मेधावी छात्रों को ₹11,000 की स्कॉलरशिप देंगे. इस योजना का उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में निषाद समाज के युवाओं को प्रोत्साहित करना और राजनीतिक रूप से जोड़ना है.
जानकारी X हैंडल के माध्यम से साझा
इस योजना की जानकारी अपने आधिकारिक X (पूर्व में ट्विटर) हैंडल के माध्यम से मुकेश सहनी ने साझा की. उन्होंने एक वीडियो संदेश में बताया कि यह स्कॉलरशिप उनके निजी कोष से दी जाएगी. इसके लिए छात्रों से ऑनलाइन आवेदन भी आमंत्रित किए गए हैं. वीडियो में सहनी ने बताया, “हमारे समाज में कई ऐसे होनहार छात्र हैं, जिन्हें सिर्फ थोड़े से सहयोग की जरूरत है. यह स्कॉलरशिप उन्हें आगे बढ़ने की दिशा में एक छोटी सी मदद है.” उन्होंने स्कॉलरशिप के लिए आवेदन प्रक्रिया की जानकारी भी वीडियो के माध्यम से साझा की है, जिससे छात्र आसानी से आवेदन कर सकें.
सियासी चाल तो नहीं है स्कॉलरशिप
पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) ने कहा, “हमारे समाज में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन अवसर और सहयोग की भारी कमी है. VIP अब उन होनहार छात्रों के लिए आगे आएगी, जो आर्थिक तंगी के कारण अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाते.” सहनी की यह घोषणा आगामी विधानसभा चुनावों से पहले आई है, जिसे विश्लेषक ‘सामाजिक सशक्तिकरण के साथ राजनीतिक समीकरण साधने की रणनीति’ मान रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों से सहनी निषाद, मल्लाह, केवट और अन्य जल-आधारित समुदायों को संगठित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. अब शिक्षा को केंद्र में रखकर उन्होंने युवा वर्ग को जोड़ने की एक साफ कोशिश की है.
जातीय जनगणना के आंकड़े इस दावे से मेल नहीं खाते
मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) का यह दावा राजनीतिक मंचों और रैलियों में अक्सर सुनने को मिलता है, जिसे वे अपने समाज के राजनीतिक महत्व को रेखांकित करने के लिए प्रस्तुत करते हैं. हालांकि, साल 2023 में बिहार में हुई जातीय जनगणना के आंकड़े इस दावे से मेल नहीं खाते. जनगणना के अनुसार, बिहार में निषाद समुदाय की कुल आबादी 34 लाख से अधिक है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का महज 2.6 प्रतिशत है. यह आंकड़ा मुकेश सहनी के दावे से काफी कम है और यहीं से सवाल उठता है कि क्या सहनी का यह दावा महज एक राजनीतिक रणनीति है या इसके पीछे कोई अन्य सामाजिक व्याख्या है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सहनी का 10 प्रतिशत वाला आंकड़ा शायद निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप जैसे समस्त जल-आधारित पेशों से जुड़ी उपजातियों को मिलाकर देखा गया अनुमान है, जिसे वे एक व्यापक ‘निषाद समाज’ के रूप में प्रस्तुत करते हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़े जातियों को अलग-अलग दर्ज करते हैं, जिससे यह दावा आधिकारिक रूप से पुष्ट नहीं होता. वहीं, वास्तविक जनगणना आंकड़े बताते हैं कि निषाद जाति (जिसमें सामान्यतः मल्लाह, निषाद, केवट जैसी जातियां शामिल हैं) की कुल हिस्सेदारी 2.6% के आसपास है.
राजनीतिक हलकों में बहस तेज
इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक हलकों में बहस तेज है. एक ओर जहां मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) अपने समाज के व्यापक एकीकरण की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर विरोधी दलों का मानना है कि यह महज राजनीतिक गणित को साधने का प्रयास है. फिलहाल यह तय है कि चाहे संख्या 2.6% हो या उससे अधिक, निषाद समुदाय बिहार की राजनीति में अपनी संगठित शक्ति और राजनीतिक भागीदारी के कारण एक अहम भूमिका निभा रहा है — और मुकेश सहनी इस समुदाय को एकजुट कर सशक्त ‘वोट बैंक’ में बदलने की कोशिश में लगातार सक्रिय हैं.