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आज का नहीं, बरसों पुराना है ये दर्द; पलायन की आंच पर धुआं-धुआं रही है बिहार की ज़िंदगी
आज का नहीं, बरसों पुराना है ये दर्द; पलायन की आंच पर धुआं-धुआं रही है बिहार की ज़िंदगी
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, April 7, 2025
Updated On: Monday, April 7, 2025
बिहार में चुनाव होना है. पुराने जख्म हरे किए जा रहे हैं. इस राज्य के लिए पलायन (Migration in Bihar) भी एक ऐसा ही मर्ज है, जिस पर केवल चुनावी मौसम में चर्चा होती है. दशकों तक इस प्रदेश और केंद्र में सत्ता में रहने वाली कांग्रेस (Congress) ने इसे सही नहीं किया. अब उसी कांग्रेस पार्टी के पूर्व सांसद व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पलायन और बेरोजगारी को लेकर युवाओं के संग बेगुसराय की धतरी पर पदयात्रा करते दिखे.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Monday, April 7, 2025
असल में, बिहार का दर्द आज का नहीं है, ये बरसों पुरानी पीड़ा है — एक ऐसी टीस जो हर गांव, हर कस्बे, हर शहर में महसूस की जा सकती है. यहां के युवाओं की आंखों में सपने तो बहुत हैं, लेकिन उनके पास उन्हें साकार करने की ज़मीन नहीं. और शायद यही वजह है कि पलायन बिहार (Migration in Bihar) की एक स्थायी नियति बन गई है.
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) बिहार के बेगूसराय पहुंचे, जहां उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) के राष्ट्रीय प्रभारी और पूर्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की अगुवाई में निकाली जा रही ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा में भाग लिया. राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान युवाओं से संवाद करते हुए बिहार में बढ़ते पलायन (Migration in Bihar) और बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि आज बिहार का नौजवान मजबूर होकर काम की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में जा रहा है, जबकि उसे अपने ही राज्य में अवसर मिलने चाहिए. उन्होंने कन्हैया कुमार की पहल की सराहना करते हुए कहा, “यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि बिहार के युवाओं की आवाज है. पलायन रोको, नौकरी दो’ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि समय की मांग है.
इस मौके पर राहुल गांधी के साथ कांग्रेस और NSUI के कई नेता मौजूद थे. यात्रा में बड़ी संख्या में स्थानीय युवा भी शामिल हुए, जिन्होंने हाथों में तख्तियां लेकर नौकरी और बेहतर शिक्षा व्यवस्था की मांग की.
बिहार की बर्बादी के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार : सैयद शाहनवाज हुसैन
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता सैयद शाहनवाज हुसैन (Syed Shahnawaz Hussain) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर तीखा हमला बोला. उन्होंने राहुल गांधी की बेगूसराय में पदयात्रा में भागीदारी और उनकी ‘सफेद टी-शर्ट आंदोलन’ की शैली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस खुद बिहार की बदहाली की जिम्मेदार रही है. शाहनवाज हुसैन ने कहा, “राहुल गांधी बेगूसराय में पदयात्रा में शामिल हुए हैं और सफेद टी-शर्ट पहनकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. लेकिन उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि बिहार की बर्बादी के लिए कांग्रेस उतनी ही जिम्मेदार है जितनी कोई और.” उन्होंने आगे आरोप लगाया कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब उसने बिहार को दंगों की आग में झोंक दिया। जब कांग्रेस हुकूमत में थी, तो उसने सिर्फ दंगे भड़काए. BJP नेता ने राहुल गांधी के बिहार दौरे को लेकर भी तंज कसते हुए कहा, “राहुल गांधी जानते हैं कि बिहार में भी उनका हाल दिल्ली जैसा ही होगा. दिल्ली में वे ज़ीरो पर आउट हुए और बिहार में भी ज़ीरो पर आउट होंगे.” शाहनवाज हुसैन ने यह भी दावा किया कि राहुल गांधी का यह दौरा सिर्फ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पर दबाव बनाने की एक राजनीतिक चाल है. उन्होंने कहा, “राहुल गांधी बिहार RJD पर दबाव बनाने के लिए आए हैं, ताकि अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत कर सकें. लेकिन जनता अब कांग्रेस और उनके इरादों को भली-भांति समझ चुकी है.”
शाहनवाज के इस बयान से स्पष्ट है कि बीजेपी राहुल गांधी की बिहार में सक्रियता को हल्के में नहीं ले रही, लेकिन साथ ही उसे अवसर मान रही है कांग्रेस और विपक्ष पर हमला करने का।
पलायन: मजबूरी या विकल्प?
हर साल लाखों लोग बिहार से दूसरे राज्यों की ओर रूख करते हैं — कोई रोज़गार की तलाश में, कोई शिक्षा के लिए, तो कोई बेहतर ज़िंदगी की आस में. लेकिन सवाल उठता है कि क्या ये लोग वाकई खुशी-खुशी घर छोड़ते हैं? जवाब है – नहीं. यह एक दर्दनाक मजबूरी है, जहां मां-बाप अपने बेटों को ट्रेन में बैठाते हुए आंखों में आंसू छिपाते हैं. गांव के रास्ते सूने पड़ जाते हैं.
गांव की रफ्तार थमी हुई है
जहां एक ओर देश के कई हिस्से विकास की रफ्तार से भाग रहे हैं, वहीं बिहार के गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं. न शिक्षा की व्यवस्था मजबूत है, न ही स्थानीय रोज़गार की संभावना. किसान अब भी मौसम और मुनाफे के बीच झूलते रहते हैं. युवाओं के पास या तो प्रतियोगी परीक्षाओं की भीड़ है या फिर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों की ओर निकल जाने की मजबूरी.
खाली होता घर, बुझती उम्मीदें
जो लोग बाहर जाते हैं, वे साल में एक या दो बार ही लौटते हैं. घरों की रौनक फीकी पड़ जाती है. त्योहारों में वो पुराना जोश नहीं रहता, और गांव की गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है. महिलाएं और बुज़ुर्ग एक अदृश्य इंतज़ार में जीते हैं. पलायन उनके लिए एक स्थायी वियोग बन जाता है.
क्या कोई समाधान है?
सरकारें योजनाएं बनाती हैं, घोषणाएं होती हैं, लेकिन ज़मीनी हालात अब भी कमोबेश वही हैं. शिक्षा और औद्योगिक विकास यदि प्राथमिकता बनें, तो शायद भविष्य में कुछ बदले. लेकिन तब तक, बिहार की ज़िंदगी पलायन की आंच पर यूं ही धुआं-धुआं होती रहेगी . यह कहानी किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस पूरे समाज की है, जिसकी जड़ें तो बिहार में हैं, लेकिन शाखाएं मजबूरी में दूर-दराज की ज़मीनों पर फैली हुई हैं.