बिहार की राजनीति में वक्फ को लेकर ऐसे मचा घमासान, जदयू के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी

बिहार की राजनीति में वक्फ को लेकर ऐसे मचा घमासान, जदयू के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी

Authored By: सतीश झा

Published On: Friday, April 4, 2025

Last Updated On: Friday, April 4, 2025

बिहार की राजनीति में वक्फ बिल को लेकर बवाल, जेडीयू के कई नेताओं ने दिया इस्तीफा.
बिहार की राजनीति में वक्फ बिल को लेकर बवाल, जेडीयू के कई नेताओं ने दिया इस्तीफा.

बिहार की राजनीति एक बार फिर धार्मिक-सामाजिक मुद्दे की आग में सुलग रही है. वक्फ संपत्तियों से जुड़े वक्फ संशोधन विधेयक (Waqf Amendment Bill 2024) पर जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) के समर्थन ने पार्टी के भीतर गहरी असहमति और विरोध को जन्म दे दिया है. नतीजा यह हुआ कि अब तक जेडीयू (JDU) के पांच से अधिक मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, जिससे न केवल पार्टी की अल्पसंख्यक रणनीति पर सवाल उठे हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ है कि पार्टी नेतृत्व और जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता बढ़ रही है.

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Friday, April 4, 2025

Waqf Bill Controversy Bihar : जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा (Sanjay Jha) का इस पर बड़ा बयान सामने आया है. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि जिन मुस्लिम नेताओं ने वक्फ बिल (Waqf Amendment Bill 2024) के विरोध में पार्टी से इस्तीफा देने की बात कही है, उन्हें वे व्यक्तिगत रूप से जानते तक नहीं हैं. संजय झा ने कहा कि, “वक्फ बिल का मकसद वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन को समाप्त करना है. यह विधेयक सुधारात्मक है, न कि किसी खास समुदाय के खिलाफ.” उन्होंने यह भी कहा कि जदयू (JDU) अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हमेशा से पक्षधर रही है और इस बिल का समर्थन जनहित में किया गया है.

इस बीच, जेडीयू नेता नदीम अख्तर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. वे वक्फ संशोधन विधेयक (Waqf Amendment Bill 2024) को लेकर नाराज़ हैं और इसी कारण उन्होंने पार्टी से अलग होने का फैसला किया. नदीम अख्तर से पहले राजू नैयर, तबरेज सिद्दीकी अलीग, मोहम्मद शाहनवाज मलिक,और मोहम्मद कासिम अंसारी भी पार्टी छोड़ चुके हैं. राजू नैयर ने अपने इस्तीफे में लिखा था, “वक्फ संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने और जेडीयू द्वारा उसका समर्थन किए जाने के बाद मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं.”

इस्तीफों की झड़ी: सिर्फ नाराज़गी या संकेत?

नदीम अख्तर, राजू नैयर, तबरेज सिद्दीकी अलीग, शाहनवाज मलिक और कासिम अंसारी जैसे नेताओं का पार्टी छोड़ना यह दिखाता है कि पार्टी के भीतर नीतिगत फैसलों में समावेशिता की कमी है. यदि इन नेताओं की दलीलों पर गौर करें, तो वे यह मानते हैं कि पार्टी ने इस विधेयक पर उनका पक्ष सुने बिना समर्थन कर दिया.

जेडीयू सांसद ललन सिंह ने AIMIM से जोड़कर साधा निशाना

वक्फ संशोधन विधेयक पर JDU में उठे असंतोष और पार्टी से इस्तीफे देने वाले नेताओं को लेकर केंद्रीय मंत्री और जेडीयू सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह (Lallan Singh) ने शुक्रवार को तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि जिन नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दिया है, उनकी राजनीतिक हैसियत नगण्य है. एक नेता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “जो जेडीयू से इस्तीफा देकर आज खुद को बड़ा नेता बता रहा है, वह 2020 में बिहार के ढाका विधानसभा क्षेत्र से AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) के पतंग चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 499 वोट हासिल कर सका था. ऐसे लोग खुद को भारी नेता कहते हैं?”

ललन सिंह ने RJD पर भी हमला बोलते हुए कहा कि उन्हें पहले अपने नेता लालू प्रसाद यादव के 2010 के उस बयान पर सफाई देनी चाहिए, जिसमें लालू ने कथित तौर पर कहा था कि हमने वक्फ की जमीनें लूट लीं, डाक बंगला की जमीन भी ले ली. उन्होंने कहा कि वक्फ की जमीनों को बचाने और उनके पारदर्शी प्रबंधन के लिए विधेयक लाया गया है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है. ललन सिंह ने वक्फ विधेयक को लेकर पार्टी के रुख को सही ठहराते हुए कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जरूरी था. कुछ लोग इस पर राजनीति कर रहे हैं, जबकि उन्हें यह देखना चाहिए कि इससे अल्पसंख्यक समाज को कैसे लाभ होगा.

क्या JDU को नुकसान होगा?

बिहार की राजनीति में JDU लंबे समय से सामाजिक समरसता और धर्मनिरपेक्षता की बात करती रही है. लेकिन यदि पार्टी अपनी अल्पसंख्यक समर्थक छवि खोती है, तो इसका लाभ राजद या कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों को मिल सकता है, जो अल्पसंख्यक समुदाय में अपनी पैठ बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.

जेडीयू के अंदर उपजे इस विवाद से साफ है कि पार्टी को अब अपने अल्पसंख्यक जनाधार को लेकर पुनर्विचार करना पड़ सकता है. हालांकि, पार्टी नेतृत्व अभी भी विधेयक को एक प्रशासनिक सुधार के रूप में पेश कर रहा है और इसे राजनीतिक रंग देने से इनकार कर रहा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व आगे कैसे इस विवाद को संभालता है और क्या यह विवाद किसी बड़े राजनीतिक मोड़ की ओर ले जाएगा.

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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