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पहली बार अमित शाह को पार्टी पर्यवेक्षक बनाने की जरूरत क्यों पड़ी
पहली बार अमित शाह को पार्टी पर्यवेक्षक बनाने की जरूरत क्यों पड़ी
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Thursday, October 17, 2024
Updated On: Thursday, October 17, 2024
कई बार लगातार बहुमत हासिल करने वाली भाजपा मुख्यमंत्री चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। इसके बावजूद नवनिर्वाचित विधायकों से मुख्यमंत्री चयन के लिए अमित शाह को हरियाणा जाना पड़ा।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Updated On: Thursday, October 17, 2024
चंडीगढ़ में कल हरियाणा भाजपा विधायक दल की बैठक में नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) को फिर से नेता चुन लिया गया। पार्टी आलाकमान के तय मुताबिक ही विधायकों की बैठक में सब कुछ हुआ। लेकिन इस बैठक में सबसे महत्वपूर्ण चेहरा थे केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Union Home and Cooperation Minister Amit Shah)। शाह पार्टी पर्यवेक्षक के रूप में बैठक में शामिल थे।
बैठक में उनकी उपस्थिति ही सबसे महत्वपूर्ण है। अमित शाह पहली बार पार्टी पर्यवेक्षक बने थे और उनके सामने पहली बार किसी राज्य का मुख्यमंत्री तय हुआ। तीसरी बार लगातार बहुमत हासिल करने वाली भाजपा मुख्यमंत्री चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। इसके बावजूद नवनिर्वाचित विधायकों से मुख्यमंत्री चयन के लिए अमित शाह को हरियाणा जाना पड़ा।
पार्टी को बगावत का डर
वर्ष 2014 के पहले भाजपा हरियाणा में तीसरे-चौथे नंबर की पार्टी थी। लेकिन 2014 के चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद से पार्टी लगातार अपना विस्तार का रही है। इस विस्तार के साथ ही पार्टी नेताओं की आकांक्षाओं का भी विस्तार होता गया। यानि अब हरियाणा भाजपा में मुख्यमंत्री के कई चेहरे और दावेदार हैं। इन दावेदारियों के कारण पार्टी में बगावत का खतरा भी प्रबल होने लगा है। पार्टी आलाकमान को इस बार मुख्यमंत्री चयन में बगावत का डर सता रहा था। शायद पार्टी ने इसीलिए अपने ‘चाणक्य’ केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह को पार्टी पर्यवेक्षक बनाकर हरियाणा भेजा।
अनिल विज से बगावत का डर
चुनाव के दौरान और पहले भी भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता अनिल विज मुख्यमंत्री की दावेदारी कर चुके हैं। अनिल विज तो एक बार रूठ भी चुके हैं। इसी साल जब पार्टी ने राज्य में मुख्यमंत्री बदला तो अनिल विज खुद को मुख्यमंत्री का सबसे बड़ा दावेदार मान रहे थे। लेकिन तब भी पार्टी ने नायब सिंह सैनी को प्रदेश का नेतृत्व सौंपा।
तब अनिल विज रूठकर बैठक से बाहर आ गए थे। चंडीगढ़ से वे सीधे अंबाला अपना निर्वाचन क्षेत्र चले आए थे। नायब सिंह सैनी सरकार में उन्होंने मंत्री पद को भी ठुकरा दिया। इस बार चुनाव में और नतीजा आने के बाद अनिल विज कई बार बयान दे चुके हैं कि पार्टी आलाकमान यदि उन्हें प्रदेश का कमान सौंपती है तो हरियाणा को नंबर एक राज्य बनाऊंगा। उनकी इच्छा को देखते हुए पार्टी को लग रहा था कि एक रूठे विज कहीं इस दफा बगावत न कर दें।
राव इंद्रजीत से भी खतरा
कांग्रेस से भाजपा में आए राव इंद्रजीत सिंह की आकांक्षा कांग्रेस के जमाने से ही मुख्यमंत्री बनने की रही है। लेकिन वहां भूपेन्द्र हुड्डा के सामने उनकी नहीं चली और वे 2014 में भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन यहां भी पहले मनोहर लाल खट्टर फिर नायब सिंह सैनी को ताज मिला और वे चूक गए।
इस बार चुनाव प्रचार के दौरान राव इंद्रजीत सिंह ने दक्षिण हरियाणा से मुख्यमंत्री बनाने का राग छेरा था। अभी तक दक्षिण हरियाणा से प्रदेश में कभी मुख्यमंत्री नहीं बना है। राव आहिर समुदाय के बड़े नेता हैं। प्रदेश में जाट के बाद अहीर ताकतवर समुदाय माना जाता है। इसलिए भी राव इंद्रजीत का दावा मजबूत है।
चुनाव में राव इंद्रजीत का प्रदर्शन उम्दा
प्रदेश के दक्षिणी भाग में राव इंद्रजीत के अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। खासकर अहीर समुदाय के प्रभाव वाला अहीरवाल बेल्ट (Ahirwal Belt) इन्हें अपना नेता मानता है। इस इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा है। पार्टी ने दक्षिण हरियाणा की 29 में से 22 सीट पर कब्जा जमाया। पिछले चुनाव में पार्टी यहां 21 सीटें जीती थीं।
अहीरवाल क्षेत्र के नतीजों को देखें तो 11 में से भाजपा ने 10 सीटों पर कब्जा जमाया। पिछले चुनाव में यहां पार्टी को 8 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में राव इंद्रजीत ने इस क्षेत्र की 11 सीटों में से 8 पर अपने पसंद के उम्मीदवारों की सूची दिए थे। पार्टी ने उनके सभी उम्मीदवारों को टिकट देकर उनपर भरोसा भी। राव के पसंद के सभी उम्मीदवार चुनाव भी जीत गए हैं। इंससे भी उनका दावा मजबूत माना जा रहा था।
लेकिन पर्यवेक्षक के रूप में चंडीगढ़ पहुंचे अमित शाह ने पार्टी के उम्मीदों के मुताबिक नायब सिंह को विधायक दल का नेता चयनित करवाने में सफल रहे। बिना किसी विवाद के अनिल विज से उनके नाम का प्रस्ताव रखवाया, जिसे विधायकों ने सर्वसम्मति से पास कर दिया। भविष्य में देखना यह होगा कि यह निर्णय वाकई में सर्वसम्मति से लिया गया था या फिर बगावत की संभावना को दबाया गया है।