Special Coverage
चाबहार बंदरगाह पर किसी के दबाव में नहीं आएगा भारत
Authored By: संजय श्रीवास्तव
Published On: Friday, May 17, 2024
Last Updated On: Friday, May 17, 2024
चाबहार समझौते को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय का रुख छिपे शब्दों में भारत पर प्रतिबंधों की धमकी देने वाला है पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की कूटनीतिक दो टूक ने साफ कर दिया कि देश अमेरिकी भभकियों से डर कर देशहित के कार्यों से पीछे हटने वाला नहीं है...
Authored By: संजय श्रीवास्तव
Last Updated On: Friday, May 17, 2024
भारत पहली बार किसी विदेशी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में ले रहा है वह भी ऐसा बंदरगाह जो उसके रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए अहम है, जिसमें उसने वित्तीय व कूटनीतिक स्तर पर भारी निवेश किया है, अब वह इससे पीछे नहीं हटेगा। यह बात विदेश मंत्री के अमेरिका को शालीनता के साथ दिए सशक्त बयान से यह बात साबित होती है।
2014 में केंद्र में पहली बार मोदी सरकार के आने के बाद 2016 से चाबहार समझौते के बारे में कूटनीतिक निरंतरता का सुफल है इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPCL) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (PMO) के बीच गहरे समुद्र वाले चाबहार पोर्ट के एक हिस्से शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के सह संचालन का सिरे चढना। समझौता 10 साल के लिए है जिसे आगे भी बढाया जा सकता है। समझौते के बाद अमेरिका, चीन और पाकिस्तान अलग-अलग वजहों से परेशान हैं। फिलहाल अमेरिकी प्रतिक्रिया से साफ है कि वह इस समझौते से खफा है। उसे लगता है कि यह उसके महाशक्ति होने का मज़ाक है कि जिस देश पर उसने अपने निजी हितों के चलते कड़े प्रतिबंध लगा रखे हों उसकी अवहेलना करते हुये कोई उससे अच्छे संबंध बनाये, समझौते और व्यापार करे। वह नहीं चाहता कि ईरान भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी करे, जबकि चीन को इस इलाके से दूर रखने के लिए यह भारत और ईरान के लिए ज़रूरी है, फिर इसमें रूस की भी दबी इच्छा है। भले अमेरिका भी हिंद महासागर, पश्चिम एशिया, अरब सागर में चीनी वर्चस्व बढता देखना नहीं चाहता पर वह चाहता है कि भारत उसके दुश्मन देशों के करीब न जाये और उनकी निर्भरता अमेरिका पर बनी रहे। इसीलिये अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने छिपे शब्दों में यह धमकी दी कि कोई देश ऐसा करता है तो अमेरिका उस पर अपने प्रतिबंध थोप सकता है। इसके जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर के कूटनीतिक बयान ने भारत के उस रुख को स्पष्ट कर दिया कि यह संप्रभु देश संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को छोड़कर किसी किसी प्रतिबंध पर कान नहीं देता। चाबहार के शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह के सह संचालन के कई रणनीतिक, आर्थिक और भू राजनीतिक मतलब हैं।
हमें अब, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया तक पहुंचने के लिये पाकिस्तान होकर नहीं जाना पड़ेगा, राह सीधी और आसान होगी तो वहां तक माल भेजने में एक तिहाई समय बचेगा। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीनी चौधराहट बहुत प्रभावी नहीं रह जाएगी और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को भारत अच्छा जवाब दे सकेगा। इसके जरिए हिंद महासागर में चीनी प्रभाव के विस्तार की कोशिशों पर भी रोक लगेगी। चाबहार से रीजनल कनेक्टिविटी सुधरेगी, अफगानिस्तान सहित कई देशों से व्यापार नेटवर्क स्थापित होगा और राजनयिक संबंधों में गति आएगी। यह सिल्क रोड के लिए वैकल्पिक रास्ता देगा। भारत इसे अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का केंद्र बना सका तो ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबेजान, रूस, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच अनवरत मालढुलाई हो सकेगी। इससे भारत के चीनी, चावल, लौह अयस्क के अलावा दूसरी चीजों के आयात निर्यात का रास्ता सुगम होगा। हमास और इजरायल संघर्ष के चलते प्रमुख व्यापार मार्ग बाधित होने के बाद यह बेहतर विकल्प बनेगा। व्यापार और निवेश के अवसरों के रास्ते खुलने से देश को आर्थिक लाभ होगा।
बेशक इसमें भारत के हित निहित हैं लेकिन इससे पूरे क्षेत्र को और कई देशों को भी फायदा होगा। चाबहार बंदरगाह के इस हिस्से के विकसित होने के बाद इसका कारोबारी इस्तेमाल के लिए कई देश उत्सुक हैं। कजाकिस्तान, आर्मेनिया, अजरबेजान, किर्गिज गणराज्य, ताजिकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि देश इसके जरिये भारतीय बाजार में पहुंच बना सकेंगे। इसीलिए केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि, ‘चाबहार को लेकर संकीर्ण दृष्टिकोर्ण नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह समझौता सभी को लाभ देगा।’ तो यह सही है। फायदा महज भारत और ईरान का नहीं बल्कि समूचे क्षेत्र का है। सवाल यह है कि नाराज़ अमेरिका क्या कर सकता है। वह ईरान से व्यापार करने वाली कंपनियों को अपने वहां रोक सकता है। अमेरिका में काम करने वाली भारतीय कंपनियों के कर्मचारियों का वीजा निरस्त कर सकता है। वह अपने या सहयोगी देशों में स्थित किसी भी भारतीय कंपनी की संपत्तियों को फ्रीज या ज़ब्त कर सकता है। बैंकिग और भुगतान में काम आने वाले को ‘स्विफ्ट नेटवर्क’ से उसके बैंक को ब्लॉक कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि बंदरगाह अभी बन रह है। इसे मौजूदा 8.4 मिलियन टन सालाना की क्षमता से बढाकर 86 मिलियन टन सालाना तक ले जाना है। बंदरगाह के काम में विशालकाय क्रेन की ज़रूरत हालैंड और जर्मनी से किराये पर लेकर पूरी होती है वह इसकी आपूर्ति बाधित कर सकता है। पर अमेरिका महज डरा रहा है, वह ऐसा कुछ नहीं करेगा। भारत एशिया और विश्व की बड़ी राजनीतिक, आर्थिक ताकत है और बहुत बड़ा बाज़ार भी। इस मुद्दे पर जिसका वह भी कभी सैद्धांतिक समर्थन करता था, महज ईरान से दुश्मनी के नाम पर भारत से पंगा लेकर अपनी सांसत नहीं बढाएगा। भारत भी जो पहली बार किसी विदेशी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में ले रहा है वह भी ऐसा बंदरगाह जो उसके रणनीतिक और कूटनीतिक हितों के लिए अहम है, जिसमें उसने वित्तीय व कूटनीतिक स्तर पर भारी निवेश किया है, वह इससे पीछे नहीं हटेगा। यह बात विदेश मंत्री के अमेरिका को शालीनता के साथ दिए सशक्त बयान से सहज सिद्ध होती है।