विदेशी मीडिया एक सुर में क्यों कह रहा है, “ आयेगा तो मोदी ही”

Authored By: संजय श्रीवास्तव

Published On: Sunday, May 5, 2024

Last Updated On: Thursday, May 16, 2024

foreign media ek sur me kyo kah raha hai aayega to modi hi
foreign media ek sur me kyo kah raha hai aayega to modi hi

विदेशी मीडिया में भारत के हलिया आम चुनावों का मुद्दा मार्च महीने से ही छाया हुआ है। अचरज की बात यह है कि सभी अलग अलग आवाज में लेकिन एक सुर में कह रहे हैं, “आयेगा तो मोदी ही”

Authored By: संजय श्रीवास्तव

Last Updated On: Thursday, May 16, 2024

विदेशी मीडिया में हमारे चुनाव की कैसी है चर्चा

चर्चा के मामले में हमारा नेशनल इलेक्शन ग्लोबल हो चुका है। संसार के तमाम छोटे बड़े देशों में इसकी खूब चर्चा है। अमेरिका और ब्रिटेन छोड़ कर शायद ही किसी देश के चुनावों के बारे में दूसरे देश की मीडिया इतनी रुचि दिखाता हो। गार्जियन, बीबीसी, द इंडीपेडेंट, अल ज़ज़ीरा, खलीज टाइम्स, अरब न्यूज, वाशिंगटन पोस्ट, ग्लोबल न्यूज, टाइम्स, फॉक्स न्यूज, टेलीग्राफ, ब्लूम्सबर्ग, एबीसी यानी ऑस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन, न्यूयॉर्क टाइम्स, डॉन जैसे जाने पहचाने पत्र पत्रिकाओं के अलावा सैकड़ों विदेशी न्यूज पोर्टल्स, वेबसाइट्स और यहाँ तक कि रानीतिक शोध तथा सामाजिक अनुसंधान वाले प्रमुख संस्थानों की वेबसाइटों पर भी भारत के हलिया आम चुनावों का मुद्दा मार्च महीने से ही छाया हुआ है। बेशक परिणाम से पहले तक यह प्रकाशन, प्रसारण और ज़ोर पकड़ने वाला है।

भारत की आज दुनिया भर में साख है। वह जिओ पॉलिटिकल नजरिए से एशिया ही नहीं समूचे संसार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिये यहां सरकार गठन के लिये होने वाला निचले सदन का आम चुनाव बाकी दुनिया के लिये खासा मायने रखता है। संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा चुनाव होने के नाते तमाम विदेशी मीडिया ने इसकी घोषणा होते ही इसके तमाम विवरणों, पूर्व सूचनाओं, तथ्यों, आकड़ों से भरे विस्तृत जानकारियों वाली रिपोर्ट्स छापीं ताकि उनके पाठक , यूजर भारतीय आम चुनावों को देखने , पढने समझने के लिए तैयार हो जाएं। विभिन्न संचार माध्यमों ने अपने संवाददाता यहां भेजे हैं।

लंदन से प्रकाशित “टाइम्स” लिखता है, “इस धरती पर शांति के समय का सबसे बड़ा एक्सरसाइज और संरचनात्मक कार्य यदि कहीं भी हो रहा है तो यही है। मिडिल ईस्ट का एक अख़बार कहता है कि, “ भारत में लोकतंत्र इसलिए जीवित है क्योंकि सुदूर पहाड़ी इलाकों, समुद्री में द्वीपों पर, सुदूर गांवों में, मतदाता ट्रेन, बस, नाव, हेलीकॉप्टर, घोड़े, जैसे तरह तरह के साधन अपना कर तमाम दूरी पाटते हुए दूर-दूर से आकर मताधिकार का प्रयोग करते हैं”। अमेरिकी पत्रिका “टाइम” के अनुसार दूसरे लोकतांत्रिक देशों से तुलना करें तो भारत में मतदान प्रतिशत अमूमन ज्यादा रहता है, पिछले चुनाव में यह 67 प्रतिशत था।” यह वहां लोकतंत्र के प्रति लोगों में जागरूकता का सकारात्मक लक्षण है। अमेरिका में 2022 के राष्ट्रपति के चुनाव में अधिकतम मतदान प्रतिशत 66 प्रतिशत ही रहा था।

यह अमेरिकी पत्रिका मानती है कि,” भारतीय चुनाव संसार के सबसे महंगे चुनाव हैं। अमेरिका ने पिछली बार अपने राष्ट्रपति चुनाव में कुल साढे छ अरब डॉलर खर्चे थे जबकि भारत 2019 के चुनाव में सात अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर चुका है। बेशक इस बार और ज्यादा होगा”। “टाइम” मैग्जीन ने एक स्टोरी में समझाया है कि भारत में होने वाले आम चुनावों की प्रक्रिया 44 दिनों तक लंबी क्यों है। इसके उसने वजहें गिनाई हैं। उसने भीषण गर्मी में होने वाले चुनावों की परेशानियों पर भी सवाल उठाते हुए कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर करने के साथ सवाल उठाए हैं कि, “ इतने तापमान में बड़ी बड़ी रैलियां, सभाएं और सघन प्रचार अभियान की इजाजत कैसे दी जा सकती है”। संभवत: भारत जैसे गर्म मुल्क के लोगों के गर्मी सहने की ताकत का उन्हें अनुमान नहीं।

देश का चुनाव विभिन्नताओं से भरा हुआ है सो विदेशी मीडिया को इसके कवरेज के दौरान इतने अंग और रंग मिलते है कि वह हर बार इसके कवर करने के लिए उत्सुक रहता है। निःसंदेह अलग अलग देशों के मीडिया की, उसकी रीति नीति की वजह से इस विविधता को देखने समझने में, व्यक्त करने में बहुधा अंतर होता है लेकिन कुछ एक मीडिया संस्थानों द्वारा कुछ मौकों को छोड़ कर अधिकतर विदेशी मीडिया हमारे मौजूदा आम चुनावों की व्यवस्था और उसकी प्रक्रिया को बहुत सकारात्मक नजरिये से देखता दीख रहा है। देश के आम चुनावों को लेकर विदेशी मीडिया की कवरेज को व्यापक तौर पर देखें तो आश्चर्यजनक तौर पर सभी अलग अलग आवाज़ में पर एक सुर से कह रहे हैं, “आएगा तो मोदी ही”।

ब्रिटेन का अखबार “द गार्डियन” लिखता है कि,” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत उनका हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा है। वे हिंदू राष्ट्रवाद का ध्वज लिये लगातार आगे बढते जा रहे हैं और देश में राजनीति और चुनावी विश्लेषक कह रहे हैं कि मोदी और भाजपा के हक में बेहतर परिणाम की पूरी उम्मीद है। संभवत: नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता हासिल करने जा रहे हैं।” उसके अनुसार दशकों बाद भारत में यह ऐसा आम चुनाव है, जिसका रिजल्ट सबको पता है। अमेरिकी पत्रिका “न्यूजवीक” अपनी स्टोरी जिसका शीर्षक है,: “व्हाई मोदी टॉवर्स ओवर अपोनेंटस इन इंडिया इलेक्शन” में बताता है कि कैसे मोदी सबसे आगे हैं। जीत रहे हैं। “न्यू यॉर्क टाइम्स” का भी अंदाज़ा है कि मोदी चुनाव जीत जाएंगे क्योंकि आर्थिक तंगी, बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहे लोग भी प्रधानमंत्री पर भरोसा जताते दिख रहे हैं और वोट को ले कर दुविधा में रहने वाले भाजपा के चुनावी रणनीति और प्रचार से प्रभावित हो उसकी और जा रहे हैं। अखबार इस बात पर अचरज व्यक्त करता है कि लगातार दो बार सत्ता में रहने के बावजूद मोदी लोकप्रिय हैं।

कतर स्थित मीडिया संस्थान अल-जजीरा की अरब जगत में बहुत साख है। वह लिखता है कि “भारत में बेरोजगारी लगातार बढने के बावजूद नौजवान नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं। बड़ी संख्या में बेरोजगार नौजवानों को विश्वास है कि कुछ ना कुछ अच्छा होगा। सरकार अच्छा कर रही है और आगे और अच्छा करेगी। अल जजीरा ने दिल्ली स्थित लोकनीति और सीएसडीएस यानी स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज के साथ मिल कर एक सर्वे किया उसका हवाला देते हुए अल ज़ज़ीरा कहता है कि,” तकरीबन 62 फीसद लोग कहते हैं कि 5 सालों में काम ढूंढना ज्यादा मुश्किल हुआ है लेकिन वहीं 12 फ़ीसदी लोग यह भी कहते हैं कि जॉब ढूंढना पहले से आसान हुआ है। महंगाई पर लोगों का जवाब एक जैसा है। 71% लोग मानते हैं कि पिछले पाँच सालों में जरूरी चीजों के दाम बढे हैं लेकिन ऐसा स्वीकारने वाले दो तिहाई से ज्यादा मतदाता मोदी के समर्थक हैं। इसका मतलब कि मोदी का युवाओं में जो वोट बैंक है वह अपनी जगह से हिला नहीं है। अल ज़ज़ीरा का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी भाजपा को चुनावों में जिता ले जाएंगे, लेकिन क्या एनडीए गठबंधन 400 सीटों का आंकड़ा पार कर पाएगा?

भारत के प्रति अमूमन आलोचनात्मक रुख रखने वाला अमेरिकी साप्ताहिक “ द इकॉनॉमिक टाइम्स” लिखता है, “इन पाँच चार्टों से आप समझिये कि इन चुनावों में भाजपा के विजयी होने का दावा क्यों सही लगता है। भाजपा ने तीन सौ सीटों के दावे से आगे बढ कर अगर अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया है तो उसके गहरे निहितार्थ हैं। और फिर वह उन पाँच महत्वपूर्ण तथ्यों, आंकड़ों पर ग्राफ और चार्ट के जरिये प्रकाश डालते हुए साबित करता है कि इस बार के आम चुनावों में भाजपा की जीत कैसे सुनिश्चित लगती है।

ब्रिटेन के मीडिया संस्थान बीबीसी ने आम चुनावों की घोषणा से पहले करवाए एक सर्वेक्षण के बारे में लिखा है कि इसमें 22 फीसदी मतदाताओं में मतदान की प्राथमिकता में राम मंदिर पहले नंबर पर था। उसके अनुसार भले ही भारत के आम लोग बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहे हैं और मतदान में ये मुद्दे भी असर डालेंगे। इससे विपक्ष को थोड़ी मजबूती मिल सकती है लेकिन धर्म और कल्याणकारी योजनाएं मतदाताओं को भाजपा से जोड़े हुए हैं। ज्यादातर मतदाताओं को यह यकीन को चला है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की ग्लोबल इमेज बदल दी है। आम लोगों की कमाई बढी है, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हुआ है। मोदी फिर प्रधानमंत्री बने तो भारत तीसरे नंबर का इकॉनॉमिक पॉवर बन जाएगा। समाचार एजेंसी “राइटर” अपने एक डिस्पैच में लिखता है कि भाजपा को उन हिंदुओं का पूरा समर्थन है जिनकी आबादी देश में 80 फ़ीसदी है। राम मंदिर निर्माण ने इस समर्थन को और पुख्ता किया है। साफ है कि 2024 का चुनाव मोदी ही जीत रहे हैं, संभव है कि सीटें कुछ कम हो जाएं।

एसोशिएट प्रेस और टाइम पत्रिका इस बात को भी लेकर चिंतित हैं कि व्हाट्स एप भारत के आम चुनावों में अफवाह फैला रहा है। एशोसिएट अपने खास डिस्पैच में लिखता है कि भारत में जैसे जैसे चुनाव प्रक्रिया आगे बढ रही है सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचनाएं बढती जा रही हैं। लेकिन व्हाटस एप, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब और फेसबुक के मालिक गूगल तथा मेटा ने इस तरह की अफवाहें और दुर्भावनापूर्ण प्रचारों से पार पाने के लिये सार्थक प्रयास किए हैं।” बेशक यह सरकारी व्यवस्था और चुनाव आयोग की जागरूकता तथा कड़ाई से ही संभव हो सका है। अमेरिका के अखबार वाशिंगटन पोस्ट का शीर्षक है- “वोटिंग, वूमेन और यूथ, मोदी और भाजपा को भारत में फिर सत्ता दिला सकते हैं” । इसके अनुसार भारी बेरोजगारी और आर्थिक किल्लत के बावजूद मोदी की पार्टी ने ऐसा माहौल बना रखा है कि महिला और युवा मतदाता उनको वोट करते दिखते हैं। हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा और कल्याणकारी कार्यक्रमों को लोगों तक पहुंचाना उन्हें कामयाबी दिलाएगा ।

पेंसेलवेनिया विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में डिग्री और कोलंबिया युनिवर्सिटी से पीएचडी करने वाले मिलन वैष्णव कार्नेगी ऐंडाओमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस मिशन के दक्षिण एशिया विभाग के निदेशक हैं। कार्नेगी की वेबसाइट के न्यूजलेटर में वे लिखते हैं, “आज हालात यह हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी जीत के प्रति इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने नौकरशाहों को यह संकेत दे दिया है कि तीसरी बार सत्ता में आने पर अगले 100 दिनों में क्या करना है वे इसका रोड मैप तैयार रखे, हम पहले दिन से ही एक्शन में होंगे”। यह वेबसाइट एक और रीपोर्ट में अनिवरन चौधरी के शोध आलेख “हाउ द बीजेपी विन ओवर वीमन” के जरिए कहती है कि, भाजपा ने सांस्कृतिक पुनरुत्थानवाद की लहर को जन्म दिया है, जातिगत समीकरणों को बदल दिया है और व्यापारिक आर्थिक विचारधाराओं में परिवर्तन को प्रेरित किया है। बदलाव की इन हवाओं ने पिछले डेढ़ दशक में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बहुत बढत दी है। इसके चलते राजनीतिक दलों के बीच “महिला वोट” को मजबूत करने की होड़ मच गई। देश में 470 मिलियन महिला मतदाता हैं। भाजपा की रणनीति ने अपेक्षाकृत कम समय में महिला मतदाताओं को अपने से जोड़ा है।

यूरोपियन पार्लियामेंट अपनी वेबसाइट पर लिखता है कि आबादी के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ चुके भारत में जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं भारत ने गरीबी दर में प्रभावी कमी की है और कल्याणकारी योजनाओं को जन जन तक पहुंचाने में व्यापक सफलता प्राप्त की है। आज भारत संसार की सबसे तेज बढने वाली अर्थव्यवस्था है और नरेंद्र मोदी ने 2047 में देश की आज़ादी के सौ साल पूरे होने तक भारत को एक विकसित देश बनाने का लक्ष्य रखा है। तमाम दूसरी उपलब्धियों का बखान करते हुये उसका निष्कर्ष है कि इन सबके चलते एक बार फिर भजपा की जीत इन आम चुनावों में सुनिश्चित दिखती है।

ज्यादातर विदेशी माध्यमों ने भारत के आम चुनावों के आयोजन और उसकी प्रक्रिया के बारे में तथ्यपरक और सकारात्मक रिपोर्टिंग की है, शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की प्रशंसा की है लेकिन किंचित आलोचनाएं भी हुयी हैं। इकोनॉमिस्ट, लॉस एंजेल्स टाइम्स, ला मोंद, टाइम और ब्लूमबर्ग जैसे कुछ पत्र पत्रिकाओं में ऐसी रिपोर्टें देखी गईं। आश्चर्यजनक तौर पर बहुतों की कथावस्तु, सोच, तकरीबन एक जैसी थी जैसे वह किसी खास विचारधारा से प्रेरित हों। अमूमन यह आलोचना उनके द्वारा ज्यादा है जिनको यहां की परिस्थितियों, तौर तरीकों की जानकारी नहीं है अथवा वे तथ्यों और तर्कों से परे आलोचना को ही अपना धर्म समझते हैं, हमारे देश के प्रति किंचित विद्वेष वाली दृष्टि रखते हैं। ऐसे विदेशी माध्यमों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि “ वे हमारे लोकतंत्र की आलोचना करते हैं तो ऐसा इसलिए नहीं कि उनके पास जानकारी की कमी है बल्कि इसलिए कि उन्हें लगता है कि वह हमारे चुनाव के राजनीतिक खिलाड़ी हैं। फिलहाल भारत का सियासी दंगल ज्यादातर बेहतर वजहों से पूरी दुनिया के लिये दर्शनीय और पठनीय बना हुआ है।

संजय श्रीवास्तव प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में 15 वर्षों से अधिक अनुभव रखने वाले एक कुशल और अनुभवी पत्रकार हैं। वैश्विक मुद्दों की गहरी समझ और विविध विषयों पर तार्किक व संतुलित लेखन उनकी प्रमुख विशेषताएं हैं। संजय श्रीवास्तव ने अपने करियर में संवेदनशील और विवादास्पद मामलों को भी निष्पक्ष और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। उनका लेखन न केवल सूचनात्मक है, बल्कि पाठकों को सोचने और समकालीन मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने राजनीति, समाज, अर्थशास्त्र, और वैश्विक घटनाओं जैसे विषयों पर अपनी गहन पकड़ और निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ पत्रकारिता जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
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