इब्राहिम रईसी (Ebrahim Raisi) की मौत से ईरान के दुनिया और भारत से संबंध कितने होंगे प्रभावित
Authored By: Sanjay Srivastava
Published On: Wednesday, May 22, 2024
Updated On: Saturday, June 29, 2024
रईसी की मौत के बाद ईरान की सियासत में हलचल है ईरान की अंदरूनी सियासत क्या करवट लेती है, अंतरराष्ट्रीय रिश्तों और बाज़ार पर इसका क्या असर होगा इस पर भारत समेत कई देश नजर रख रहे हैं
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत के तुरंत बाद बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह ख़ामेनई साफ किया कि चिंता ना करें, रईसी की मौत से देश का प्रशासन और सरकार के काम काज कतई प्रभावित नहीं होंगे। उनके उत्तराधिकारी माने जाने वाले रईसी के बारे में यह बात अयातोल्लाह ख़ामेनई ने संभवत: इसलिये कही कि देश की परिस्थिति को देखते हुए यह कहना शायद जरूरी हो, लेकिन रईसी की राजनीतिक अहमियत को शून्य करने वाली इस बात को इस मौके पर सम्मानजनक तरीके से भी कहा जा सकता था।
रईसी की हैसियत
सैद्धांतिक तौर पर खामेनई की बात सच हो सकती है। ईरान की शासन व्यवस्था में निर्वाचित राष्ट्रपति, नंबर दो की अहमियत रखता है और अनिर्वाचित सर्वोच्च लीडर की हैसियत नंबर एक की होती है। राष्ट्रपति ज्यादातर मामले में वह खुद फैसले नहीं लेता बल्कि सर्वोच्च लीडर के फैसले को लागू करने का काम करता है। ऐसे में मोटे तौर पर देखें तो ईरान के आंतरिक और वैदेशिक नीतियां और मूल सिद्धांत जस के तस ही रहेंगे। ईरान के संविधान के मुताबिक़, भले ही आंतरिक नीतियों कुछ कम पर कार्यकारिणी के प्रमुख राष्ट्रपति का विदेश नीति में ठीक ठाक दखल होता है सो ऐसा भी नहीं है कि रईसी के जाने का ईरान के आंतरिक राजनीति, व्यवस्था,व्यापार ,अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, कूटनीति और आर्थिकी तथा बाजार पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ेगा। रईसी के जाने के बाद राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव ईरान की घरेलू राजनीति में हलचल लाएगा। चीन, अमेरिका, रूस, सऊदी अरब समेत खाड़ी के बहुत से देशों के साथ साथ इस्राइल, भारत और वैश्विक स्तर की राजनीति पर उनका प्रयाण प्रभाव डाल सकता है। सोना, क्रूड आयल, शेयर बाज़ार और कुछ दूसरे कार्य व्यापार भी अवश्य प्रभावित होंगे।
भारत पर प्रभाव
जहां तक भारत की बात है, प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ईरान से देश के संबंध पहले से और बेहतर किए हैं जिसमें रईसी और ईरान के विदेश मंत्री विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन का सक्रिय सहयोग था। दुर्भाग्य से दोनों एक साथ मारे गये। अब ईरानी संविधान के अनुसार 50 दिनों में नया राष्ट्रपति चुनना है, चुनाव कराने होंगे। भारत की नजर इस बात पर है कि दो महीने बाद आने वाला राष्ट्रपति रईसी की तरह ही कट्टरपंथी होगा या हसन रूहानी जैसा मॉडरेट। क्या नए राष्ट्रपति कि अपनी कुछ आर्थिक और वैदेशिक पसंदगी नापसंदगी और नीतियां होंगी या वह लकीर का फकीर होगा। फिलहाल दिल्ली और तेहरान के बीच हुए चाबहार बंदरगाह को लेकर हुए 10 साल के समझौते को कोई खतरा नहीं है क्योंकि वह व्यक्ति-विशिष्ट समझौता नहीं है। ईरान के साथ भारत के दूसरे भी कुछ सौदे समझौते इसी तरह के द्विपार्श्विक हैं। उनपर रईसी के रहने न रहने का कोई असर नहीं होगा।
अंतरराष्ट्रीय पर असर
अगर रईसी की जगह कोई नया राष्ट्रपति चरमपंथी गुट से आता है तो चरमपंथी संगठनों हिजबुल्लाह, हूती और हमास को सक्रिय समर्थन जारी रहेगा और लेबनान में ईरान समर्थित चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह की ताकत और बढेगी। वे इजराइल पर दबाव बनाएंगे जिससे इजराइल और ईरान के बीच अशांति को बढावा मिलेगा। उधर यमन के हूतियों की सक्रियता को कम करने की कोशिशें भी कमजोर पड़ेंगी। रईसी और तत्कालीन विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियन ने मिलकर ईरान के सहयोगियों के साथ बैठकें कर के इसराइल-ग़ज़ा युद्ध के दौरान कूटनीतिक मामलों को बहुत हद तक संभाला था तथा अरब और पश्चिमी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ तालमेल बना वे ईरान को इस अशांति की आग की आंच से बचाते दिखे थे। देखना होगा कि नए राष्ट्रपति इस दिशा में क्या करते हैं और पड़ोसी पाकिस्तान के प्रति क्या रुख रखते हैं। उनके समय में सऊदी अरब से सुलह कितनी आगे बढती है। फिलहाल वह चाहे ब्रिक्स में शामिल हो डी डॉलराजेशन की नीति को आगे बढाने की बात हो या रूस का साथ देना या फिर अमेरिका इजराइल विरोध, रूस चीन के एनजदीकी से चिढन। ऐसा लगता है कि ईरान रईसी के जाने के बाद भी अपनी दशकों पुरानी विदेश नीति पर ही कायम रहेगा।
घरेलू मोर्चे पर
ईरान में अभी राष्ट्रीय शोक जारी है। इस दौरान रईसी के जाने के की खाली जगह भरने के लिये तमाम गुटों की सियासी कोशिशें तेज़ हैं। ख़ामेनई के वफादार मोहम्मद मोखबर अस्थायी राष्ट्रपति हैं। रईसी के खेमे में कई कट्टरपंथी और व्यावहारिक नेता तो हैं पर अभी किसी ने उत्तराधिकारी बनने के लिये ताल नहीं ठोकी है, जल्द ही कोई चेहरा सामने आयेगा। राष्ट्रपति पद के लिए बड़े दावेदारों में खामेनई के बेटे मोजतबा खुमैनी भी मैदान में होंगे जिनकी प्रशासनिक कुशलता संदिग्ध है लेकिन सर्वोच्च लीडर के बेटे होने के नाते वे राष्ट्रपति पद के चुनाव में सबसे आगे रहेंगे। सर्वोच्च लीडर चुनने वाली संस्था ‘असेम्बली ऑफ़ एक्सपर्ट’ में मौलवी के पद पर भी किसी को चुनना है। कुल मिला कर क्षेत्रीय युद्ध में उलझे अमेर्तिकी प्रतिबंध तथा आर्थिक चुनौतियों के मारे ईरान में भले राजनीतिक अस्थिरता न व्यापे पर राजनीतिक उथल पुथल बढेगी और इजरायल के खिलाफ उसने जो अघोषित मोर्चा खोल रखा है उससे उसका ध्यान भटकेगा।
बाज़ार होगा प्रभावित
रईसी के बाद नया राष्ट्रपति यदि अपनी आर्थिक नीतियों के साथ आता है ईरान के साथ दूसरे देशों के संबंधों, अमेरिकी प्रतिबंधों तथा घरेलू आर्थिक सुधारों पर उसका असर होगा। ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक ईरान हर दिन तीस लाख बैरल तेल निकालता है। दक्षिण कोरिया और तुर्की के अलावा भारत, जापान इससे बड़ी मात्रा में तेल खरीदते हैं, चीन तो सबसे ज्यादा। रईसी के जाने से इस क्षेत्र में अस्थिरता की बात कही जा रही है लेकिन तेल बाजार पर सीमित असर ही पड़ेगा। ज्यादा प्रभावित चीन हो सकता है। ईरान दुनिया में सोने का 167वां सबसे बड़ा निर्यातक है। पर इसका असर उसके मुख्य आयातक कनाडा के अलावा शायद ही किसी पर पड़े। रईसी की मौत से शेयर बाजारों पर पड़ने वाला प्रभाव भी अस्थायी ही होगा।
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