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गुजरात से क्या संदेश देना चाहती है कांग्रेस, 64 साल बाद यहां हो रहा है अधिवेशन
गुजरात से क्या संदेश देना चाहती है कांग्रेस, 64 साल बाद यहां हो रहा है अधिवेशन
Authored By: सतीश झा
Published On: Sunday, April 6, 2025
Updated On: Sunday, April 6, 2025
कांग्रेस (Congress) पार्टी ने एक लंबे अंतराल के बाद एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए 64 वर्षों बाद फिर से गुजरात की धरती पर राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने का फैसला लिया है. यह निर्णय महज एक आयोजन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है, जो आने वाले लोकसभा चुनावों की रणनीति को स्पष्ट करता है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Sunday, April 6, 2025
Congress Adhiveshan 2025 : 8 और 9 अप्रैल 2025 को यह अधिवेशन अहमदाबाद स्थित साबरमती नदी के तट पर संपन्न होगा. कांग्रेस ने इस अधिवेशन की थीम ‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण और संघर्ष’ निर्धारित की है. पार्टी का मानना है कि यह अधिवेशन विचारधारा, समर्पण और संघर्ष की भावना को दर्शाएगा.कांग्रेस पार्टी इस अधिवेशन को राजनीतिक और संगठनात्मक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण मान रही है और इसे आगामी चुनावों के लिए रणनीतिक रूप से निर्णायक पड़ाव माना जा रहा है.
गुजरात में इस बार आयोजित होने वाला कांग्रेस का अधिवेशन कई मायनों में ऐतिहासिक है, क्योंकि 64 वर्षों के अंतराल के बाद यहां अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का अधिवेशन हो रहा है. पार्टी के 139 वर्षों के इतिहास में गुजरात को अब तक केवल दो बार इस स्तर के अधिवेशन की मेज़बानी का अवसर मिला है. पिछली बार यह आयोजन 1961 में भावनगर में हुआ था.
अधिवेशन से एक दिन पूर्व, 8 अप्रैल को विस्तारित कांग्रेस कार्य समिति (CWC) की बैठक अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल स्मारक में आयोजित होगी, जिसमें अधिवेशन के एजेंडे को अंतिम मंजूरी दी जाएगी. इस बैठक में सीडब्ल्यूसी सदस्य, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, विधायक दलों के नेता, पूर्व मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री समेत लगभग 169 प्रमुख नेता हिस्सा लेंगे.
कांग्रेस ने अधिवेशन के लिए गुजरात को चुनने के पीछे एक विशेष कारण भी बताया है. वर्ष 2025 में महात्मा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की 100वीं वर्षगांठ और सरदार पटेल की 150वीं जयंती मनाई जा रही है. दोनों ही महान नेताओं का जन्म गुजरात में हुआ था, इसलिए अधिवेशन के लिए इस राज्य को चुना गया है.
9 अप्रैल को होने वाले मुख्य अधिवेशन में 1,725 निर्वाचित और चयनित एआईसीसी सदस्य शामिल होंगे, जिनमें सांसद, मंत्री, वरिष्ठ नेता और संगठन के अन्य प्रमुख पदाधिकारी भी शामिल होंगे. उल्लेखनीय है कि कांग्रेस का पिछला अधिवेशन 2023 में रायपुर (छत्तीसगढ़) में लोकसभा चुनावों से पहले आयोजित किया गया था.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का पार्टी संगठन को लेकर दिया गया संदेश न केवल समयानुकूल है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि चुनाव की तैयारी महज छह महीने या एक वर्ष पहले शुरू करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके लिए पार्टी को पूरे पांच वर्षों तक सतत और संगठित प्रयास करने होंगे.
यह बात कांग्रेस जैसी पुरानी और व्यापक राजनीतिक विरासत वाली पार्टी के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो कई राज्यों में सत्ता से बाहर है और देश की राजनीति में अपना पुराना प्रभाव फिर से स्थापित करना चाहती है. खरगे ने जिला अध्यक्षों को सीधे तौर पर जिम्मेदारियां सौंपते हुए यह स्पष्ट किया कि संगठन की जड़ें मजबूत तभी होंगी जब निचले स्तर पर निरंतर सक्रियता और जवाबदेही बनी रहे. खरगे का यह भी कहना कि मतदाता सूची में संभावित “छेड़छाड़” पर सतर्क निगाह रखनी चाहिए, इस ओर इशारा करता है कि पार्टी को चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए निचले स्तर पर भी सक्रिय रहना होगा. यह बयान न केवल संगठनात्मक सजगता की मांग करता है, बल्कि भाजपा और संघ परिवार पर लगने वाले आरोपों की पृष्ठभूमि में कांग्रेस की रणनीति को भी रेखांकित करता है.
सबसे अहम बात यह है कि खरगे ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा किए जा रहे कथित सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मुकाबला करने के लिए एक नई राष्ट्रीय मुहिम छेड़ने की बात कही है. उन्होंने संकेत दिया कि यह मुहिम कुछ वैसी ही हो सकती है जैसी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ थी. उस यात्रा ने न केवल कांग्रेस को जमीनी स्तर पर संबल दिया था, बल्कि जनता के बीच पार्टी की उपस्थिति को भी पुनः मजबूत करने का प्रयास किया था.
ऐसे समय में जब भारतीय राजनीति में वैचारिक टकराव गहराता जा रहा है, कांग्रेस को केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक चुनौती का भी उत्तर देना होगा. इसलिए अधिवेशन में प्रस्तुत होने वाली इस नई मुहिम की दिशा और रूपरेखा कांग्रेस के भविष्य की रणनीति को तय करेगी.
यह अधिवेशन केवल एक संगठनात्मक पहल नहीं, बल्कि कांग्रेस की आगामी रणनीति का केंद्र है. वर्ष 2026 के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अब मैदान में आक्रामक तेवर और स्पष्ट एजेंडे के साथ उतरेगी. पार्टी यह भी संदेश देना चाहती है कि वह संविधान की रक्षा, लोकतंत्र की मजबूती और जनहित के लिए पूरी ताकत से सक्रिय है.