Varanasi Maa Annapurna Puja : मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय महाव्रत अनुष्ठान शुरू

Varanasi Maa Annapurna Puja : मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय महाव्रत अनुष्ठान शुरू

Authored By: स्मिता

Published On: Thursday, November 21, 2024

Updated On: Thursday, November 21, 2024

mata annapurna devi
mata annapurna devi

अन्नपूर्णा भोजन की स्वामी और दाता पार्वती के महत्वपूर्ण स्वरूपों में से एक है। उन्हें यह नाम इसलिए मिला, क्योंकि उन्होंने भगवान शिव को अन्न या भोजन परोसा था। उस समय शिवजी एक भिक्षुक के रूप में घूम रहे थे।

Authored By: स्मिता

Updated On: Thursday, November 21, 2024

वाराणसी में मां अन्नपूर्णा मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास दशाश्वमेध मार्ग, विश्वनाथ गली में है। अन्नपूर्णा या अन्नपूर्णा माता भोजन या पोषण की देवी मानी जाती हैं। अन्न का अर्थ है भोजन और पूर्ण का अर्थ है पूरा करना। माता पार्वती को अन्नपूर्णा मंदिर में सम्मानित किया जाता है। मातारानी का महाव्रत 17 वर्ष 17 महीने 17 दिन का होता है। महाव्रत के पहले दिन सुबह मंदिर के महंत शंकर पुरी ने 17 गांठ वाले धागे श्रद्धालुओं को दिया। जिसे महिलाओं ने पूरे उत्साह के साथ बाएं और पुरुषों ने दाहिने हाथ में बांधा। संकल्प के साथ महाव्रत शुरू करने वाले श्रद्धालु दिन में सिर्फ एक बार फलाहार करेंगे। इसमें नमक का प्रयोग वर्जित (Varanasi Maa Annapurna Puja) है।

माता अन्नपूर्णा की पौराणिक कथा (Mythological Story of Mata Annapurna) 

अन्नपूर्णा भोजन की स्वामी और दाता पार्वती के महत्वपूर्ण स्वरूपों में से एक है। उन्हें यह नाम इसलिए मिला, क्योंकि उन्होंने भगवान शिव को अन्न या भोजन परोसा था। उस समय शिवजी एक भिक्षुक के रूप में घूम रहे थे। इस सन्दर्भ में कथा है कि पार्वती ने अपना गौरी रूप खो दिया। उन्होंने शिव से अपने गौरी रूप को पुनः प्राप्त करने के लिए मदद मांगी। शिव ने उन्हें वाराणसी में अन्न दान करने के लिए कहा। इसलिए उन्होंने भोजन की देवी अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और एक सुनहरा बर्तन और करछुल लेकर वाराणसी में भोजन दान (किया।

धान की बालियों से मां के विग्रह का श्रृंगार

मंदिर के महंत शंकरपुरी के अनुसार, 17 दिनों तक महाव्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को अन्न-धन, ऐश्वर्य की कमी जीवन पर्यन्त नहीं होती। इस महाव्रत में भक्त पूरे 17 दिनों तक अन्न का त्याग करते हैं। उन्होंने बताया कि इस अनुष्ठान का समापन 7 दिसंबर को होगा। सात दिसम्बर को धान की बालियों से मां के विग्रह का श्रृंगार होगा। अगले दिन 08 दिसम्बर को प्रसाद स्वरूप धान की बाली आम भक्तों में वितरित की जाएगी।

धान की पहली बाली मां को अर्पित

यह ध्यान देने वाली बात है कि माता अन्नपूर्णा का मंदिर पूरे देश में ऐसा मंदिर है, जहां भक्त अपनी पहली धान की फसल की बाली अर्पित करते हैं। पूर्वांचल के विभिन्न जिलों के किसान अपने धान की फसल की पहली बाली मां को अर्पित करते है। फिर उसी बाली को प्रसाद के रूप में अपनी दूसरी धान की फसल में रखते हैं। किसानों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। मां अन्नपूर्णा के भक्तों को अन्न-धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि में कमी कभी नहीं होती है।

(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)

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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।

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