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बिहार की राजनीति: जातीय समीकरणों के बिना अधूरी चुनावी बिसात
बिहार की राजनीति: जातीय समीकरणों के बिना अधूरी चुनावी बिसात
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, March 17, 2025
Updated On: Monday, March 17, 2025
बिहार की राजनीति में चुनावी गणित जातीय समीकरणों के बिना अधूरा माना जाता है. राज्य में हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपनी रणनीति जाति आधारित वोट बैंक को ध्यान में रखकर बनाते हैं. चाहे 2005, 2010, 2015 या 2020 का विधानसभा चुनाव हो, जातीय समीकरणों ने हमेशा निर्णायक भूमिका निभाई है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Monday, March 17, 2025
Bihar Politics: बिहार में ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत जैसी ऊंची जातियां जहां परंपरागत रूप से बीजेपी के समर्थन में रही हैं, वहीं यादव, मुस्लिम और कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का झुकाव राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर रहा है. कुर्मी और कोइरी जातियों को जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का मजबूत आधार माना जाता है. दलित और महादलित वोट बैंक विभिन्न दलों के बीच बंटा हुआ है, हालांकि पासवान समुदाय पर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) का प्रभाव रहा है.
2005 से 2020 तक जातीय समीकरणों का असर
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों की भूमिका हमेशा से अहम रही है, जो चुनावी नतीजों को सीधे प्रभावित करती है. राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा निर्णायक रहे हैं, लेकिन विकास, सुशासन और नेतृत्व की छवि भी अब महत्वपूर्ण कारक बनते जा रहे हैं, जो आगामी चुनावों में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
- 2005 में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने उच्च जातियों और ओबीसी के समर्थन से आरजेडी को सत्ता से बाहर किया.
- 2010 में नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल ने जातीय समीकरणों से परे जनता का भरोसा जीता और भारी बहुमत मिला.
- 2015 में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन ने मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत कर जीत दर्ज की.
- 2020 में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को ऊंची जातियों और ओबीसी का समर्थन मिला, लेकिन आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
किस जाति की कितनी आबादी
बिहार सरकार द्वारा जारी जातीय गणना की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में कुल 215 जातियों और 6 धर्मों के अनुयायियों की गिनती की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में हिंदुओं की आबादी 10 करोड़ 71 लाख 92 हजार 958 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 81.99% है। वहीं, मुस्लिम आबादी 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 है, जो 17.70% हिस्सेदारी रखती है. अन्य धर्मों की बात करें तो: बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या 1,11,201 (0.08%) है. ईसाई धर्म के अनुयायी 75,238 (0.05%) हैं. सिख धर्म के मानने वाले 14,753 (0.01%) हैं. जैन धर्म के अनुयायी 12,523 (0.0096%) हैं. जातीय गणना के ये आंकड़े बिहार की सामाजिक संरचना को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं और आगामी चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं.
2005 विधानसभा चुनाव
2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए—फरवरी और अक्टूबर में। फरवरी में कोई भी दल स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर सका, जिससे राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई. अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए, जिसमें जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को उच्च जातियों (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं का समर्थन मिला, जिससे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा.
2010 विधानसभा चुनाव
इस चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने प्रचंड जीत दर्ज की. नीतीश कुमार की सुशासन और विकास की छवि ने जातीय सीमाओं को लांघते हुए व्यापक जनसमर्थन हासिल किया। आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन को इस चुनाव में करारी हार मिली.
2015 विधानसभा चुनाव
2015 में जेडीयू ने बीजेपी से अलग होकर आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया. मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण, कुर्मी और कोइरी जातियों के समर्थन के साथ महागठबंधन को बड़ी जीत मिली, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा.
2020 विधानसभा चुनाव
2020 में जेडीयू ने फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन किया, जबकि आरजेडी ने कांग्रेस और वामदलों के साथ महागठबंधन बनाया. इस चुनाव में एनडीए ने मामूली बहुमत से सरकार बनाई, लेकिन जेडीयू की सीटें घटीं, जबकि बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया. जातीय समीकरणों में उच्च जातियों और ओबीसी का समर्थन एनडीए को मिला, जबकि महागठबंधन को मुस्लिम और यादव मतदाताओं का अधिक समर्थन प्राप्त हुआ.
जातीय समीकरणों में बदलाव
पिछले दो दशकों में बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. मंडल आयोग के बाद ओबीसी और दलित समुदायों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ा, जिससे पारंपरिक उच्च जाति-आधारित राजनीति में बदलाव आया. आरजेडी ने मुस्लिम-यादव गठजोड़ से अपनी पकड़ मजबूत की. जेडीयू को कुर्मी, कोइरी और अन्य ओबीसी जातियों का समर्थन मिला. बीजेपी ने उच्च जातियों के साथ-साथ कुछ ओबीसी और दलित समुदायों में भी अपनी पैठ बनाई .
RJD और JDU का प्रभाव
1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में RJD मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिए मजबूत हुई. 2005 के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में JDU ने सुशासन और विकास के एजेंडे पर अपनी पकड़ मजबूत की. 2015 में महागठबंधन के जरिए आरजेडी ने वापसी की, लेकिन 2020 में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने फिर से सत्ता हासिल की.
BJP का बढ़ता प्रभाव
BJP ने बिहार में उच्च जातियों के साथ-साथ कुछ ओबीसी और दलित वर्गों में भी अपना प्रभाव बढ़ाया. 2020 में जेडीयू की तुलना में अधिक सीटें जीतकर NDA में अपनी स्थिति मजबूत की.
आगामी चुनाव की संभावनाएं
आगामी विधानसभा चुनावों में जातीय समीकरण एक बार फिर अहम भूमिका निभाएंगे. यदि एनडीए (BJP-JDU) गठबंधन बरकरार रहता है, तो उन्हें उच्च जातियों, कुर्मी, कोइरी और कुछ दलित समुदायों का समर्थन मिल सकता है. आरजेडी मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत करने की कोशिश करेगा. नए युवा मतदाता और विकास के मुद्दे भी चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.