बिहार में क्यों चर्चा में आया ‘जमाई आयोग’? जानिए क्या है इसकी पूरी कहानी

बिहार में क्यों चर्चा में आया ‘जमाई आयोग’? जानिए क्या है इसकी पूरी कहानी

Authored By: सतीश झा

Published On: Monday, June 16, 2025

Last Updated On: Monday, June 16, 2025

बिहार में जमाई आयोग पर राजनीतिक चर्चा
बिहार में जमाई आयोग पर राजनीतिक चर्चा

बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया और दिलचस्प शब्द सुर्खियों में है — ‘जमाई आयोग (Jamai aayog)’. सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक इस शब्द को लेकर चर्चा जोरों पर है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह ‘जमाई आयोग’ है क्या, और क्यों यह अचानक से चर्चा का विषय बन गया है?

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Monday, June 16, 2025

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली एनडीए (NDA) सरकार पर जोरदार हमला बोला है. उन्होंने आरोप लगाया है कि हाल ही में राज्य सरकार द्वारा राज्य महिला आयोग समेत विभिन्न आयोगों में की गई नियुक्तियां भाई-भतीजावाद का स्पष्ट उदाहरण हैं. तेजस्वी ने कहा कि NDA के नेताओं और कुछ सेवानिवृत्त नौकरशाहों के करीबी रिश्तेदारों को आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य जैसे अहम पदों पर नियुक्त किया गया है. इन नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने विधानसभा में व्यंग्य करते हुए कहा, “अब तो सरकार को नेताओं के रिश्तेदारों को समायोजित करने के लिए ‘जमाई आयोग’ (Jamai aayog) भी बना देना चाहिए.”

‘जमाई आयोग’ शब्द भले ही मज़ाक में उछाला गया हो, लेकिन इसने बिहार की राजनीति में रिश्तेदारी, योग्यता और वफादारी की बहस को एक बार फिर से ज़िंदा कर दिया है. यह घटना दिखाती है कि राजनीतिक नियुक्तियों में पारदर्शिता और नैतिकता को लेकर जनता कितनी सतर्क है — और विपक्ष भी हर मौके को भुनाने में कितना तत्पर. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह विवाद यहीं शांत हो जाता है या आगे कोई और ‘आयोग’ चर्चा में आता है.

क्या है ‘जमाई आयोग’?

‘जमाई आयोग’ कोई आधिकारिक संस्था या संवैधानिक आयोग नहीं है. यह शब्द तंज और व्यंग्य में इस्तेमाल किया गया है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए ऊंचा पद या विशेष सम्मान दे दिया गया क्योंकि वह किसी प्रभावशाली नेता या मुख्यमंत्री का रिश्तेदार या दामाद (जमाई) है.

इस शब्द का संदर्भ कैसे आया?

यह शब्द हाल ही में एक पूर्व नौकरशाह की राजनीतिक नियुक्ति के बाद उछाला गया. दरअसल, आईएएस अधिकारी रह चुके मनीष वर्मा को जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने न केवल राज्यसभा भेजा, बल्कि उन्हें पार्टी का संसदीय दल का नेता भी बना दिया.

तेजस्वी यादव का आरोप है कि कुछ आयोगों के गठन और उनके पदाधिकारियों की नियुक्तियां योग्यता या अनुभव के आधार पर नहीं, बल्कि रिश्तेदारी और राजनीतिक नजदीकियों के आधार पर की गई हैं. उन्होंने यह भी कहा कि “क्या यह भाई-भतीजावाद नहीं है? क्या राज्य में योग्य और संघर्षशील लोगों की कोई कदर नहीं रही? क्या आयोग अब सिर्फ सत्ता से जुड़े लोगों के लिए आरक्षित हैं?” तेजस्वी के इस बयान से बिहार की राजनीति में नियुक्तियों को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. विपक्ष ने इसे लोकतंत्र और प्रशासनिक प्रणाली के लिए खतरा बताया है.

मनीष वर्मा की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रिश्तेदारी (बताया जा रहा है कि वे दूर के रिश्ते में ‘जमाई’ हैं) को देखते हुए विपक्ष ने इस पूरे घटनाक्रम को नैतिकता और योग्यता की बजाय संबंधों पर आधारित नियुक्ति करार दिया और व्यंग्य में इसे ‘जमाई आयोग’ की उपज बताया.

किसने उठाया मुद्दा?

विपक्षी दलों, खासकर राजद और कांग्रेस के नेताओं ने इस मुद्दे को खूब उछाला है. सोशल मीडिया पर भी तमाम यूजर्स ने इस शब्द को लेकर मीम्स और पोस्ट बनाए हैं. कुछ ने तंज कसते हुए लिखा कि बिहार में अब ‘संबंध नीति’ (Relational Policy) पर नियुक्तियां हो रही हैं, जबकि योग्य और संघर्षशील कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है.

जदयू का जवाब क्या है?

JDU के नेताओं ने इस आरोप को खारिज किया है और कहा है कि मनीष वर्मा एक अनुभवी प्रशासक रहे हैं और उन्होंने विकास, आपदा प्रबंधन और प्रशासनिक सुधारों में अहम भूमिका निभाई है. वे पार्टी की विचारधारा और मुख्यमंत्री की नीति से भी लंबे समय से जुड़े रहे हैं.

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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