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क्या इस 7% अतिरिक्त वोट पर ही टिका है बिहार का चुनावी परिणाम?
क्या इस 7% अतिरिक्त वोट पर ही टिका है बिहार का चुनावी परिणाम?
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, June 16, 2025
Last Updated On: Monday, June 16, 2025
बिहार की राजनीति में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या महागठबंधन को सत्ता तक पहुंचाने के लिए वोट शेयर में 7% (7 percent vote impact Bihar)की बढ़ोतरी ही निर्णायक साबित होगी? हालिया सर्वेक्षणों और राजनीतिक विश्लेषण के अनुसार, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को 32% जनसमर्थन प्राप्त है. यह आंकड़ा महागठबंधन की चुनावी नींव को मजबूत करता है, लेकिन पूर्ण बहुमत के लिए इसे कम से कम 7% और बढ़ाने की ज़रूरत मानी जा रही है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Monday, June 16, 2025
बिहार की सियासत में इस समय चुनावी समीकरण और वोट शेयर को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं. हाल ही में सामने आए राजनीतिक विश्लेषण के अनुसार, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व वाली RJD को राज्य में 32% जनसमर्थन प्राप्त है. यह आंकड़ा महागठबंधन के लिए एक मजबूत नींव के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन पूर्ण बहुमत के लिए इसे कम से कम 7% (7 percent vote impact Bihar)और बढ़ाने की आवश्यकता बताई जा रही है.
क्यों है ये 7% वोट इतना अहम?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तकरीबन 22% वोटर, यह वही वर्ग है जो अंतिम समय में चुनावी नतीजों की दिशा तय करता है/ ऐसे में, अगर महागठबंधन इस 22% में से केवल 7% वोट भी अपनी तरफ खींच लेता है, तो वह बहुमत के करीब या शायद सत्ता में भी पहुंच सकता है.
22% ऐसे वोटर हैं, जो अभी किसी भी गठबंधन के पक्ष में नहीं
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में लगभग 22% ऐसे वोटर हैं जो अभी किसी भी गठबंधन के पक्ष में स्पष्ट रूप से नहीं हैं. ये तटस्थ वोटर भविष्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. खास तौर पर, प्रशांत किशोर (PK) की ‘जन सुराज’ जैसी पहलें इस वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं.
मुकेश सहनी बन सकते हैं महागठबंधन की पूंजी
इसी परिप्रेक्ष्य में विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) को महागठबंधन के लिए एक राजनीतिक संपत्ति के रूप में देखा जा रहा है. सहनी की निषाद समुदाय और अन्य पिछड़ी जातियों में मजबूत पकड़ है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और नदी किनारे बसे इलाकों में. यदि सहनी महागठबंधन के साथ मजबूती से बने रहते हैं, तो यह वोट शेयर 32% से आगे निकलकर सत्ता के समीकरण बदल सकता है.
क्या हैं महागठबंधन के लिए मौके?
- मुकेश सहनी जैसे नेताओं की भूमिका: निषाद और पिछड़े वर्गों में मजबूत पकड़ रखने वाले सहनी यदि गठबंधन के साथ मजबूती से बने रहते हैं, तो ग्रामीण क्षेत्रों से खासा वोट जुड़ सकता है.
- युवा और बेरोजगारों का समर्थन: तेजस्वी यादव लगातार युवाओं को रोजगार और शिक्षा के मुद्दे पर जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. यदि यह वर्ग प्रभावित होता है, तो 7% का यह आंकड़ा जल्द पार हो सकता है.
- एनडीए के अंदरूनी मतभेद: यदि BJP और JDU के बीच तालमेल में दरार या असंतोष बढ़ता है, तो वह महागठबंधन के पक्ष में काम कर सकता है.
लेकिन चुनौतियां भी हैं
बिहार का चुनाव इस बार पूरी तरह से कुछ प्रतिशत वोटों के इधर-उधर होने पर टिका है. ऐसे में 7% अतिरिक्त वोट महज एक आंकड़ा नहीं, बल्कि सत्ता की चाबी हो सकता है. अब देखना यह होगा कि तेजस्वी यादव और महागठबंधन इस संभावित समर्थन को वास्तविक वोट में कैसे तब्दील करते हैं.
जन सुराज जैसे तीसरे विकल्पों की उपस्थिति, जो तटस्थ वोटर्स को अपनी ओर मोड़ सकते हैं. वोटों का बिखराव, खासकर छोटे दलों के बीच, जिससे सीधी लड़ाई का लाभ NDA को मिल सकता है.
युवाओं और हाशिए के वर्गों को जोड़ने की चुनौती
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और कांग्रेस सहित अन्य सहयोगी दल आपसी सामंजस्य के साथ काम करें, और युवा मतदाता, महिलाओं तथा हाशिए के तबकों को जोड़ने की रणनीति पर जोर दें, तो महागठबंधन आने वाले चुनावों में एक बड़ी चुनौती बन सकता है. बिहार की राजनीति अभी अस्थिर और संभावनाओं से भरी हुई है. लेकिन यह तय है कि तेजस्वी यादव की राजद एक सशक्त विकल्प के रूप में उभर रही है. यदि वे 7% अतिरिक्त वोट जुटाने में सफल होते हैं और तटस्थ मतदाताओं को अपने पाले में ला पाते हैं, तो महागठबंधन के लिए सत्ता की राह काफी हद तक आसान हो सकती है.