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योग से मिलता है परमानंद : श्री श्री रविशंकर
योग से मिलता है परमानंद : श्री श्री रविशंकर
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, July 16, 2025
Last Updated On: Wednesday, July 16, 2025
योग जीवन में खुशी, उत्साह और सुख का अनुभव लेने में मदद करता है. योग के माध्यम से हम सहज होते जाते हैं, जो हमें परमानंद की अनुभूति दिला देता है. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का चिंतन.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Wednesday, July 16, 2025
योग जीवन में खुशी, उत्साह और सुख का अनुभव लेने में मदद करता है. योग के माध्यम से हम सहज होते जाते हैं, जो हमें परमानंद की अनुभूति दिला देता है. आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर का चिंतन.
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर बताते हैं, योग के अनेक लाभ हैं. पहला है – अच्छा स्वास्थ्य. दूसरा योग हमें तनाव मुक्त जीवन जीने के तकनीक प्रदान करता है.योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं है, यह हरेक परिस्थिति में आपको कुशलता से कर्म करना सिखाता है. योग का ज्ञान एक सागर की तरह विशाल है. योगाभ्यास सर्वोच्च सत्य के ज्ञान के लिए तैयार करता है. आप दुखी हैं, तो यह आपको दुख से बाहर ले जाता है. आप बहुत बेचैन हैं, तो योग आप के अंदर धैर्य लाता है. यह आप में वह कुशलता लाता है जिसकी आपको ज़रुरत है. दैनिक जीवन में आने वाले तनाव पूर्ण परिस्थितियों के रहते हुए भी मुस्कान बनाए रखना योग का उद्देश्य है. सबसे बड़ी बात यह है कि योग परम आनंद की प्राप्ति कराता है.
ऊर्जा और उत्साह पैदा करता है योग
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अनुसार, हमारे कर्म ही हमारे सुख-दुख के कारण होते हैं. जब हमारे कर्म कुशल होते हैं, तब वह कर्म हमें सुख देते हैं. व्यक्ति को जीवन में अधिक जिम्मेदार बनाने में भी योग सहायक है. इसे कर्म योग कहा जाता है.योग आपमें और अधिक ऊर्जा और उत्साह पैदा करता है. यदि आपके पास पर्याप्त उत्साह और ऊर्जा है, तो आप निश्चित रूप से और अधिक जिम्मेदारी लेते हैं. उसका भार आप अनुभव नहीं करते हैं. योग के आठ अंग है और उनमें से एक आसन है.
क्या है योगासन
श्री श्री रविशंकर आसन की परिभाषा बताते हैं – एक ऐसी मुद्रा जो स्थिर और सुखद हो. योग आसन करते समय आपको आराम महसूस होना चाहिए. आराम की परिभाषा क्या है? जब आप शरीर को महसूस नहीं करते हैं. आप किसी टेढ़े-मेढ़े स्थिति में बैठे हैं, तो शरीर के उन हिस्सों के दर्द पर आपका ध्यान चला जाता है. आपका ध्यान दर्द पर अधिक रहता है. शुरुआत में आसन की असुविधा पर ध्यान रहता है. लेकिन अगर आप अपने मन को उससे गुजरने देते हैं, तो आप पाएंगे कि बस कुछ ही मिनटों में असुविधा गायब हो गयी. आपको शरीर का आभास ही नहीं रहा. आसन में अनंत के विस्तार का अनुभव मिलता है.
सहजता से मिलता है आनंद
ध्यान रखें कि प्रत्येक आसन का लक्ष्य सिर्फ सही स्थिति बनाना नहीं है, बल्कि अपने भीतर में एक विस्तार का अनुभव करना है. योग आसन में यह सबसे महत्वपूर्ण बात है. यह थोड़े ही अभ्यास के साथ आप के अनुभव में आने लगता है. योग की एक अन्य परिभाषा है दृश्य से दृष्टा भाव में आना. बहिर्मुखी से धीरे-धीरे अंतर्मुखी बनना. सबसे पहले वातावरण से भौतिक शरीर पर अपना ध्यान ले जाना. फिर अपने ध्यान को शरीर से मन की ओर ले जाना. अपने मन में उत्पन्न होते विचारों को साक्षी भाव से देखने से वह भी दृश्य बन जाते हैं. भीतर जाने से हम उस तत्व तक पहुंच जाते हैं, जो सब कुछ देख रहा है. यही योग है. जब भी आप जीवन में खुशी, उत्साह, परमानंद और सुख का अनुभव करते हैं, तो जाने अनजाने में आप उस सर्व दृष्टा की प्रकृति का ही अनुभव कर रहे होते हैं. योग के माध्यम से हम सहजता से उसी परमानंद का अनुभव करते हैं.
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