Shantanu Naidu and his Lighthouse : कौन हैं शांतनु नायडू, जो रतन टाटा को कहते थे अपना लाइटहाउस?

Shantanu Naidu and his Lighthouse : कौन हैं शांतनु नायडू, जो रतन टाटा को कहते थे अपना लाइटहाउस?

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Wednesday, February 5, 2025

Last Updated On: Wednesday, February 5, 2025

Shantanu Naidu and his Lighthouse: Story of Ratan Tata’s Trusted Aide
Shantanu Naidu and his Lighthouse: Story of Ratan Tata’s Trusted Aide

शांतनु नायडू (Shantanu Naidu) को टाटा मोटर्स का जनरल मैनेजर एवं स्ट्रेटेजिक इनिशिएटिव्स का हेड बनाया गया है. खुद उन्होंने अपने लिंक्डइन पेज पर इस नई जिम्मेदारी मिलने की जानकारी साझा की है. शांतनु टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन दिवंगत रतन टाटा के सबसे करीबियों में गिने जाते हैं. अपनी वसीयत में रतन टाटा शांतनु के नाम बहुत कुछ लिखकर गए हैं. उन्होंने उनका एजुकेशन लोन एवं गुडफेलोज में अपनी हिस्सेदारी खत्म कर दी है. आखिर कौन हैं शांतनु नायडू, जिनपर रतन टाटा इतना ज्यादा भरोसा करते थे?

Authored By: अंशु सिंह

Last Updated On: Wednesday, February 5, 2025

Shantanu Naidu and his Lighthouse: शांतनु नायडू सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं. रतन टाटा के देहांत के बाद उन्होंने एक बेहद ही भावुक पोस्ट सबके साथ साझा किया था. उन्होंने लिखा था कि कैसे रतन टाटा के साथ दोस्ती ने उनके अंदर एक खालीपन पैदा किया है, जिसे वे अपनी बाकी की जिंदगी में भरने की कोशिश करेंगे. अब एक बार फिर शांतनु ने लिंक्डइन पर भावुक पोस्ट के जरिये उन्हें मिली नई जिम्मेदारी की जानकारी साझा की है. शांतनु ने लिखा है, ‘मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैं टाटा मोटर्स में जनरल मैनेजर, हेड (स्ट्रेटेजिक इनिशिएटिव्स) के पद पर काम शुरू कर रहा हूं. मुझे याद है जब मेरे पिता सफेद शर्ट एवं नेवी पैंट में टाटा मोटर्स के प्लांट से घर आते थे और मैं खिड़की पर उनका इंतजार करता था. अब यह चक्र पूरा हो गया है.’ शांतनु के पिता के अलावा उनके दादा एवं परदादा दोनों ही महाराष्ट्र के भीरा स्थित टाटा पावर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से जुड़े थे।

पढ़ाई के दौरान सीखा उद्यमिता एवं लीडरशिप का कौशल

पुणे में जन्मे शांतनु ने 2014 में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की है. इसके बाद, 2016 में उन्होंने अमेरिका के कॉर्नेल जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए डिग्री हासिल की. यूनिवर्सिटी में वे पढ़ाई के अलावा दूसरी गतिविधियों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे, जिससे उनके व्यक्तित्व, एंटरप्रेन्योरशिप एवं लीडरशिप स्किल्स में काफी निखार आता चला गया. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें हेममीटर एंटरप्रेन्योरशिर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. शिक्षा पूरी करने के उपरांत शांतनु ने टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के तौर पर करियर की शुरुआत की. वे साल 2017 से टाटा ट्रस्ट में काम कर रहे हैं. साल 2022 में उन्हें रतन टाटा के ऑफिस में जीएम बना दिया गया. इसके अलावा, 2021 में उन्होंने ‘गुडफेलोज’ (Goodfellows) नाम से स्टार्टअप भी शुरू किया, जो अकेले रहने वाले बुजुर्गों को कांप्रिहेंसिव सपोर्ट उपलब्ध कराती है.

पशु प्रेम के कारण रतन टाटा से हुई गहरी दोस्ती

रतन टाटा का पशु प्रेम जगजाहिर रहा है. खासकर लावारिस कुत्तों की वे बहुत फिक्र करते थे. उन्होंने कई कुत्तों को अपने यहां पनाह भी दे रखी थी. पशु प्रेम की वजह से ही उन्होंने मुंबई में पशुओं का पहला चिकित्सालय शुरू किया. रतन टाटा की तरह ही शांतनु नायडू भी पशु प्रेमी रहे हैं. साल 2014 में दोनों की दोस्ती की वजह भी यही रही. शांतनु दुर्घटना के शिकार होने वाले बेसहारा कुत्तों को बचाने के लिए रिफ्लेक्टव कॉलर बनाते थे और उन्हें कुत्तों के गले में लगा देते थे. इससे गाड़ी चलाने वालों को यह रिफ्लेक्टिव कॉलर अंधेरे में ही दिख जाता था और वे गाड़ी को रोक देते थे. इसने रतन टाटा को काफी प्रभावित किया. और देखते ही देखते दोनों की दोस्ती की चर्चा चारों ओर होने लगी, क्योंकि तब शांतनु महज 20 साल के थे. बाद में रतन टाटा ने उन्हें अपना पर्सनल असिस्टेंट नियुक्त कर लिया. बाद में शांतनु ने सड़क पर घूमने वाले कुत्तों की मदद के लिए ‘मोटोपॉज’ नामक संस्था भी बनाई थी.

रतन टाटा के साथ अनुभवों पर आधारित लिखी किताब

शांतनु नायडू रतन टाटा को लाइटहाउस कहा करते थे, जिन्होंने उन्हें इतना प्यार एवं सम्मान दिया. इसलिए जब उन्होंने किताब लिखने का निर्णय लिया, तो उसका नाम रखा- आइ केम अपॉन के लाइटहाउस (I came upon a Lighthouse)। इसमें उन्होंने रतन टाटा के साथ अपनी दोस्ती, उनके साथ बिताए गए लम्हों एवं उनके अनछुए व्यक्तित्व पर खूबसूरती से प्रकाश डाला है. शांतनु ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था कि कैसे जब उन्होंने रतन टाटा से किताब लिखने की अनुमति मांगी, तो वे फौरन राजी हो गए. साथ में एक टिप्पणी भी कि अब तक ऐसी कोई किताब नहीं आई है, जिसने उनकी संपूर्ण जीवनयात्रा को समेटा हो.

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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