Vaisakhi 2025: ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने का है यह फसल उत्सव

Vaisakhi 2025: ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने का है यह फसल उत्सव

Authored By: स्मिता

Published On: Wednesday, April 9, 2025

Last Updated On: Wednesday, April 9, 2025

वैसाखी के अवसर पर पारंपरिक पोशाक में पंजाबी लोग खेतों में नृत्य करते हुए, फसल उत्सव के दौरान ढोल बजाते हुए.
वैसाखी के अवसर पर पारंपरिक पोशाक में पंजाबी लोग खेतों में नृत्य करते हुए, फसल उत्सव के दौरान ढोल बजाते हुए.

Vaisakhi 2025: 13 अप्रैल 2025, दिन रविवार को देश भर में वैसाखी का त्योहार मनाया जाएगा. इसे सौर वर्ष की शुरुआत के रूप में उत्तर भारत के कुछ हिस्सों और विशेष रूप से पंजाब में अच्छी फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की नींव रखी थी.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Wednesday, April 9, 2025

Vaisakhi 2025 : वैसाखी को सौर वर्ष की शुरुआत या नया साल के रूप में जाना जाता है. यह उत्तर भारत के कुछ हिस्सों और विशेष रूप से पंजाब में खेतों से फसल घर ले आने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए व्यापक रूप से मनाया जाता है. मुख्य रूप से पंजाब में इस दिन लोग गुरुद्वारों में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं। वैसाखी जुलूस के साथ-साथ पारंपरिक नृत्य और गायन उत्सव (Vaisakhi 2025) के भी आयोजन किए जाते हैं.

फसल उत्सव है वैसाखी (Harvest Festival Vaisakhi)

वैसाखी या बैसाखी त्योहार लोग बहुत उत्साह और आनंद के साथ मनाते हैं. खासकर पंजाब और पड़ोसी राज्य हरियाणा में यह त्योहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार का किसानों के बीच बहुत महत्व है. यह रबी की फसल (ठंडे मौसम में उगने वाली फ़सलें रबी की फ़सलें होती हैं. इनकी बुआई अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है. अप्रैल से जून के बीच इसकी कटाई होती है. रबी की फ़सलों में गेहूं, जौ, चना, सरसों, मटर, आलू, तिलहन, और दलहन शामिल हैं) की कटाई का समय होता है. वैसाखी या बैसाखी न केवल सिखों, बल्कि हिंदू और बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों के बीच भी महत्व रखता है. इसे आमतौर पर फसल उत्सव के रूप में भी जाना जाता है.

वैसाखी का इतिहास (Vaisakhi History)

वर्ष 1567 में गुरु अमर दास ने वैसाखी की शुरुआत की. उनका उद्देश्य लोगों को गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना था. बैसाखी या वैसाखी का सिखों के लिए विशेष महत्व है. इस दिन वर्ष 1699 में उनके दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की नींव रखी थी. इसलिए इसे सिख नव वर्ष के रूप में भी देखा जाता है.

वैसाखी त्योहार तिथि और मुहूर्त (Vaisakhi 2025 Date)

वैसाखी 2025 दिन – 13 अप्रैल 2025, रविवार
वैसाखी संक्रांति 2025 – 08:56 एम

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत (Guru Teg Bahadur)

गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा के गठन के साथ ही समाज की बुराइयों और मुगल बादशाहों के खिलाफ लड़ने के लिए एक सेना का गठन किया. खालसा के गठन के पीछे मुख्य कारण नौवें सिख गुरु गुरु तेग बहादुर जी (गुरु गोविंद सिंह जी के पिता) की शहादत थी. मुगल बादशाह औरंगजेब ने सार्वजनिक रूप से उनका सिर कलम कर दिया था. गुरु तेग बहादुर जी गैर-मुसलमानों (कश्मीरी हिंदू पंडित) के धार्मिक उत्पीड़न और मुगल बादशाह औरंगजेब के इस्लामी शरिया शासन के खिलाफ थे. वे उसका विरोध भी कर रहे थे. औरंगजेब पूरे भारत में इस्लाम फैलाना चाहता था और गुरु तेग बहादुर जी हिंदू और सिख समुदाय के सभी लोगों के साथ अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए खड़े हुए। इसलिए मुगलों ने उन्हें एक बड़ा खतरा मानते हुए मृत्यु के घाट उतार दिया.

महान बलिदान की आवश्यकता ( Great Sacrifice)

उनकी मृत्यु के बाद गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के अगले गुरु के रूप में पदभार संभाला. गुरु गोबिंद सिंह ने 30 मार्च 1699 को आनंदपुर (भारतीय राज्य पंजाब के रूपनगर जिले का एक शहर) के पास केशगढ़ साहिब में वैसाखी के दिन एक बड़ी सभा बुलाई. केशगढ़ साहिब में हजारों लोग एकत्र हुए. तब गुरु गोबिंद सिंह एक तलवार के साथ तंबू से बाहर आए. उन्होंने लोगों के सामने एक जोरदार भाषण दिया. भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि प्रत्येक महान कार्य के लिए महान बलिदान की आवश्यकता होती है. जो कोई भी अपना जीवन बलिदान कर सकता है उसे आगे आना चाहिए. तीन बार बुलाने के बाद एक युवक ने खुद को पेश किया.

खालसा पंथ की स्थापना (Khalsa Panth)

गुरु युवक को तंबू के अंदर ले गए और खून से सनी तलवार लेकर अकेले बाहर आए. तब गुरु गोबिंद सिंह के कहने पर कुल पांच सिख तंबू के अंदर चले गए. बाद में लोग उन पांचों लोगों को जीवित देखकर आश्चर्यचकित हो गए. उन्होंने भगवा रंग के वस्त्रों के साथ पगड़ी भी बांधी हुई थी. आज हम इन सभी पांच लोगों को गुरु द्वारा पंज प्यारे या ‘प्रिय पांच’ के रूप में जानते हैं. उन्होंने खालसा पंथ की नीव रखते हुए सिखों को पांच “क” पहनने के लिए कहा- केश (लंबे बाल), कंघा (कंघी), कृपाण (खंजर), कच्छा (शॉर्ट्स) और एक कड़ा (कंगन). इस समारोह के बाद गुरु गोविंद सिंह ने गुरुओं की परंपरा को भी बंद कर दिया. अंततः उन्होंने सिख धर्म के शाश्वत मार्गदर्शक गुरु ग्रंथ साहिब का पालन करने और दाढ़ी और बाल नहीं कटवाने का आग्रह किया.

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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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