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बिहार की राजनीति में अब भी धुरी हैं लालू यादव – 78वां जन्मदिन खास
बिहार की राजनीति में अब भी धुरी हैं लालू यादव – 78वां जन्मदिन खास
Authored By: सतीश झा
Published On: Wednesday, June 11, 2025
Last Updated On: Wednesday, June 11, 2025
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सुप्रीमो और बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) आज अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं. राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता तक, हर ओर से उन्हें शुभकामनाएं मिल रही हैं. हालांकि स्वास्थ्य कारणों से वे सक्रिय राजनीति से थोड़े दूर हैं, लेकिन राजनीतिक प्रभाव और बयानबाज़ी में आज भी उनकी मौजूदगी महसूस की जाती है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Wednesday, June 11, 2025
Lalu Prasad Yadav Birthday 78: बिहार की सियासत में आज भी लालू यादव की राजनीतिक पकड़ और रणनीतिक सोच को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. गठबंधन की राजनीति हो या विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश, लालू यादव की भूमिका अहम मानी जाती है. हाल के लोकसभा चुनावों में भले ही RJD को अपेक्षित सफलता न मिली हो, लेकिन सामाजिक समीकरणों को साधने और पिछड़े वर्गों की आवाज़ बनने की लालू की पहचान बरकरार है.
जन्म 11 जून 1946 को बिहार के गोपालगंज जिले में
लालू यादव का जन्म 11 जून 1946 को बिहार के गोपालगंज जिले में हुआ था. सामाजिक न्याय की राजनीति के प्रबल पैरोकार रहे लालू ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी और फिर उन्होंने बिहार और देश की राजनीति को नए आयाम दिए. वे बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्रीय रेल मंत्री भी रह चुके हैं.
उनके जन्मदिन पर तेजस्वी यादव, मीसा भारती, और राजद के अन्य नेताओं ने उन्हें बधाई दी है. तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा, “पापा, आपने हमेशा हमें अन्याय के खिलाफ लड़ना, गरीबों के हक के लिए खड़ा होना और सामाजिक सौहार्द बनाए रखना सिखाया. आप हमारे लिए प्रेरणा हैं. जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.”
जन्मदिन पर लोग कर उठा रहे हैं लालू यादव के शासन पर सवाल
राजनीतिक बहसों में एक बार फिर बिहार के पिछड़ेपन और पलायन के मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है. सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक, लालू प्रसाद यादव के लंबे कार्यकाल को लेकर तीखी आलोचनाएं सामने आ रही हैं. आरोप है कि उनके शासनकाल में बिहार ने विकास की दिशा में कदम नहीं बढ़ाया, बल्कि पलायन, अपराध और औद्योगिक ठहराव का प्रतीक बन गया.
पलायन और पिछड़ेपन की पीड़ा फिर चर्चा में
विश्लेषकों और आलोचकों का मानना है कि लालू यादव के 15 साल के शासन में बिहार में छात्रों, मजदूरों और कारोबारियों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. राज्य में कल-कारखाने बंद होते चले गए और पिछड़ी जातियों के लोग, जिन्हें लालू यादव का सबसे बड़ा वोटबैंक माना जाता है, रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रुख करने को मजबूर हो गए.
परिवारवाद पर भी उठे सवाल
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने आज के दिन लालू प्रसाद के परिवार पर भी सवाल उठाया है. आरोप है कि अपने बेटे को दिल्ली के प्रतिष्ठित स्कूल आरकेपुरम में भेजा गया, लेकिन वह पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापस लौट आया. वहीं दोनों बेटियों ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की, लेकिन आज तक किसी को यह नहीं पता कि उन्होंने कभी डॉक्टर की भूमिका निभाई या नहीं. कोविड काल में, जब पूरे बिहार को स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब भी लालू परिवार की ‘डॉक्टर बेटियां’ जनता के बीच नहीं दिखीं.
सजा के बावजूद सक्रिय राजनीति
लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद भी जमानत पर बाहर हैं और पूरी तरह राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं. कई बार उन्हें जनसभाओं, रैलियों और बैठकों में भी देखा गया है, जिससे विपक्ष यह सवाल उठाता है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है?
बिहार में आज भी वही स्थिति?
वर्तमान स्थिति पर भी सवाल उठते हैं. आलोचकों के अनुसार, बिहार में आज ना कोई नया कारखाना खुल रहा है और ना ही कोई पुराना दोबारा शुरू होने की उम्मीद है. मजदूरों की भारी कमी महसूस की जा रही है क्योंकि बिहार के श्रमिक दूसरे राज्यों में मेहनत कर रहे हैं, वहीं अपना राज्य खाली होता जा रहा है.
सवाल यह है कि जिन्हें बिहार को संवारना था, वो आज भारत को संवारने के लिए दिल्ली, मुंबई, पंजाब और गुजरात में मजदूरी कर रहे हैं. इस पृष्ठभूमि में यह सवाल फिर से उठता है कि क्या बिहार वास्तव में बदलेगा? क्या राजनीति से परे हटकर किसी सरकार का फोकस औद्योगिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन रोकने पर केंद्रित होगा? बिहार को एक बार फिर से संवारने की जरूरत है दृ और यह तभी संभव होगा जब नेतृत्व में ईमानदार इरादे, पारदर्शिता और दूरदर्शिता होगी.
बयानों ने राज्य और केंद्र की राजनीति में बहस छेड़ दी
बयानबाज़ी में भी लालू हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में उनके कुछ राजनीतिक बयानों ने राज्य और केंद्र की राजनीति में बहस छेड़ दी थी, जिससे स्पष्ट होता है कि विचारधारा और व्यंग्य का उनका अंदाज़ आज भी असरदार है. स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद, उनका जज़्बा और राजनीतिक सजगता उन्हें आज भी बिहार की राजनीति की धुरी बनाए हुए है. जन्मदिन के इस अवसर पर उनके समर्थक राज्यभर में कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं और उनके लंबे जीवन की कामना कर रहे हैं.