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उपचुनाव के बाद सियासी हलचल: जीत-हार का गुणा-गणित, बसपा की निष्क्रियता पर उठ रहे सवाल
उपचुनाव के बाद सियासी हलचल: जीत-हार का गुणा-गणित, बसपा की निष्क्रियता पर उठ रहे सवाल
Authored By: सतीश झा
Published On: Thursday, November 21, 2024
Last Updated On: Thursday, May 1, 2025
नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत-हार का गुणा-गणित लगाने में जुट गए हैं। चुनावी नतीजे आते ही हर दल अपनी जीत को लेकर उत्साहित है, लेकिन कुछ दलों की खामोशी और निष्क्रियता ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Thursday, May 1, 2025
बुधवार को हुए नौ विधानसभा सीटों पर भाजपा और सपा के बीच ही स्पष्ट लड़ाई दिखी। बसपा के कार्यकर्ता भी कई जगहों पर नदारद रहे। वहीं कांग्रेस में भी कहीं उत्साह और सपा के साथ तालमेल बैठाकर चलते नहीं देखा गया। यहां तक कि अखिलेश यादव चुनावी प्रक्रिया के दौरान सुबह से ही गड़बड़ियों का मुद्दा सोशल मीडिया पर उठाते रहे, जिस पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई भी की लेकिन कांग्रेस नेता सोशल मीडिया पर भी अखिलेश यादव का साथ देते नहीं दिखे।
वहीं पूरे उपचुनाव के दौरान बसपा प्रमुख मायावती ने सिर्फ एक बार प्रेस-कांफ्रेस किया। इसके बाद वे खामोश बनी रहीं। बसपा के दूसरे बड़े पदाधिकारी भी अपने उम्मीदवारों के प्रचार में रुचि नहीं दिखायी। इससे बसपा का चुनाव प्रचार फीका रहा। यही नहीं बूथों पर बसपा द्वारा कोई हो-हल्ला नहीं देखा गया। कई जगहों पर तो बसपा के एजेंट भी न होने की सूचनाएं मिल रही हैं। बसपा की खामोशी पर लोग अब तरह-तरह की अटकलें लगा रहे हैं।
सपा का दावा, भाजपा का जोश
समाजवादी पार्टी (SP) ने सभी सीटों पर जीत का दावा करते हुए अपनी सफलता को लेकर आत्मविश्वास दिखाया है। सपा के नेता जश्न की तैयारियों में जुटे हुए हैं और चुनावी नतीजों के बाद पार्टी के कार्यकर्ता उत्साहित हैं। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी जीत की संभावना जताते हुए पूरी जोश-खरोश के साथ अपनी रणनीतियां तैयार कर रही है, जबकि पार्टी के नेता भी जीत का दावा करते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस और बसपा की खामोशी
वहीं, कांग्रेस (Congress) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान भी कोई खास उत्साह नहीं दिखाया और न ही सपा के साथ किसी प्रकार की तालमेल की कोशिश की। बसपा की निष्क्रियता को लेकर लोगों में तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि बसपा का सियासी स्थिति में बदलाव न आना और चुनावी रण में उनकी खामोशी पार्टी की सियासी दिशा पर सवाल खड़े कर रही है।
अटकलें और भविष्य की रणनीतियां
बसपा की खामोशी पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। क्या पार्टी अपने पुराने वोटबैंक को पुनः संजीवनी देने में नाकाम रही है? या फिर बसपा किसी बड़ी रणनीति के तहत चुप है? यह सवाल राजनीतिक हलकों में तूल पकड़ने लगा है। वहीं, कांग्रेस के भविष्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह आगामी चुनावों में अपनी खोई हुई स्थिति को फिर से हासिल कर पाएगी?
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा के दबाव में बसपा चुनाव में मौन रही, क्योंकि उसकी सक्रियता से कई जगहों पर भाजपा उम्मीदवारों को ही नुकसान होने का डर था। बसपा पहले ही यह भी समझ चुकी थी कि वह इस उपचुनाव में सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। वह इसमें कुछ विशेष करने में सक्षम नहीं है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि बसपा प्रमुख जानबूझकर सक्रिय नहीं हुईं, जिससे कि हार के बाद उनकी छवि गिरने के आरोपों से बचा जा सके। चुनाव में हार के बाद बसपा क्षेत्रीय पदाधिकारियों पर हार का ठीकरा फोड़कर उन्हें पद से हटा देगी और यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि क्षेत्रीय पदाधिकारियों की निष्क्रियता से ही पार्टी की हार हुई।
(हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के इनपुट के साथ)