‘जब हम न रहेंगे तो बहुत याद करोगे’ किसने कही थी जावेद अख्तर से यह बात? पढ़ें लेखक की जिंदगी से जुड़े अनसुने किस्से

‘जब हम न रहेंगे तो बहुत याद करोगे’ किसने कही थी जावेद अख्तर से यह बात? पढ़ें लेखक की जिंदगी से जुड़े अनसुने किस्से

Authored By: JP Yadav

Published On: Thursday, January 16, 2025

Last Updated On: Saturday, April 26, 2025

Javed Akhtar ki zindagi se jude ankhon dekhe kisse, kisne kaha tha 'jab hum na rahenge to yaad karoge
Javed Akhtar ki zindagi se jude ankhon dekhe kisse, kisne kaha tha 'jab hum na rahenge to yaad karoge

Javed Akhtar Biography : अपने खूबसूरत गीतों-कहानियों और जानदार डायलॉग्स से करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले लेखक और गीतकार जावेद अख्तर ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में अलग मुकाम बनाया है. महान गीतकार और फिल्मकार गुलजार को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई और लेखक फिलहाल जावेद अख्तर जितना सक्रिय होगा. जावेद अख्तर ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि उनके गीत सीधे दिल को छू जाते हैं. इस स्टोरी में हम बताएंगे जावेद अख्तर के जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं के बारे में, जो उन्हें ना केवल अच्छा गीतकर बनाते हैं, बल्कि बेहतरीन इंसान की भी श्रेणी में खड़ा करते हैं.

Authored By: JP Yadav

Last Updated On: Saturday, April 26, 2025

इस लेख में:

  1. हर दौर में चला कलम का जादू
  2. बचपन में ही हो गया था मां का निधन
  3. पहली पत्नी और जावेद अख्तर का जन्मदिन एक ही तारीख को
  4. पिता ने नाम रखा जादू, जानें कैसे हो गया जावेद ?
  5. ‘सिलसिला’ अब तक जारी
  6. सलीम खान से जोड़ी बनाकर लिखीं कई फिल्में
  7. कभी नहीं बनी पिता से

हर दौर में चला कलम का जादू

पटकथा लेखक के अलावा जावेद अख्तर (Javed Akhtar) लेखक और शायर भी हैं. उनकी शायरी और गीत लोग गुनगुनाते हैं. पिता जान निसार अख्तर के अलावा महान शायर-गीतकार कैफी आजमी से शायरी और गीत लिखने का हुनर सीखने वाले जावेद अख्तर ने फिल्म इंडस्ट्री में लंबा सफर तय किया है. वह फिल्मी दुनिया में बदलते दौर का गवाह रहे. जावेद अख्तर को कई फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.

‘दिलों में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम.
नज़र में ख्वाबों की बिजलियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम.
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो.
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समा देखें यह निगाहें
जो अपनी आंखों में हैरानियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियां लेके चल रहे हो तो ज़िंदा हो तुम.’

‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’ फिल्म की ये पंक्तियां दिल को छू जाती हैं. युवाओं के लिए लिखी गईं ये लाइनें दिलों में जोश भर देती हैं. जावेद अख्तर ने ऐसे न जाने कितने ही सकारात्मक विचार (positive thoughts) लिखे हैं, जो दर्शकों ने फिल्मों में देखे और सुने हैं. जावेद अख्तर ने भले ही अपना करियर बतौर डायलॉग राइटर शुरू किया था, लेकिन जब गीत लिखने शुरू किए तो बॉलीवुड इंडस्ट्री में छा गए. जावेद अख्तर अपने काव्यात्मक गीत (Poetic lyrics) के लिए जाने जाते हैं. ‘1947 अ लव स्टोरी’, ‘लगान’, ‘नमस्ते लंदन’, ‘कल हो ना हो’, ‘मैं हूं ना’, ‘रॉक ऑन’ और ‘ओम शांति ओम’ समेत कई फिल्मों में लिखे गए उनके गाने काफी लोकप्रिय हैं.

बचपन में ही हो गया था मां का निधन

17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में जन्मे जावेद अख्तर का बचपन अच्छा नहीं बीता. दरअसल, जावेद जब बहुत छोटे थे तभी मां सफिया अख्तर का निधन हो गया. वह उर्दू की मशहूर लेखिका थीं और अध्यापन का कार्य भी करती थीं. पिता जान निसार ने दूसरी शादी कर ली. वह कुछ समय तक अपनी सौतेली मां के घर भोपाल में रहे, लेकिन घर में उनका मन नहीं लगता था. मां के निधन का सदमा दिल में था तो उसे भुलाने के लिए दोस्तों का सहारा लिया. वह दोस्तों के साथ अधिक रहते. फिर भोपाल में ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान जिंदगी के थपेड़ों ने बहुत कुछ सिखाया. कहा जाता है कि मां के निधन के ठीक बाद वह कुछ दिन लखनऊ में अपने नाना-नानी के पास भी रहे. इसके बाद अलीगढ़ चले गए जहां उनकी खाला (मौसी) रहती थीं. यहीं पर उनकी स्कूली पढ़ाई हुई. प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के कुछ दिनों बाद वह भोपाल आ गए और यहीं पर कॉलेज की पढ़ाई की.

पहली पत्नी और जावेद अख्तर का जन्मदिन एक ही तारीख को

जावेद अख्तर ने पहली शादी हनी ईरानी से की. वह अभिनेत्री और पटकथा लेखक हैं. हनी ईरानी ने महेश कौल की फिल्म ‘प्यार की प्यास’ में बाल कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू किया. इसके बाद भी कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए. शादी के वक्त हनी ईरानी अपने शौहर जावेद अख्तर से ज्यादा चर्चित थी. पटकथा लेखक के तौर उन्होंने खूब नाम कमाया है. खैर शादी के बाद जावेद अख्तर और हनी ईरानी के दो बच्चे फरहान और जोया अख्तर हुए. बेटी जोया निर्देशन के क्षेत्र में हैं तो फरहान कई फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके हैं. इनमें मिल्खा सिंह भी है, जिसमें फरहान अख्तर ने उम्दा रोल किया है. यह भी एक रोचक तथ्य है कि हनी ईरानी और जावेद अख्तर का जन्मदिन एक ही तारीख को होता है. कहा जाता है कि जावेद अख्तर और हनी ईरानी की पहली मुलाकात ‘सीता और गीता’ फिल्म की शूटिंग के दौरान के सेट पर हुई थी. यह फिल्म सलीम-जावेद ने लिखी थी. हनी और जावेद के बाद यहीं से नजदीकियां बढ़ीं और प्यार हो गया. इसके बाद दोनों ने शादी कर ली.

पिता ने नाम रखा जादू, जानें कैसे हो गया जावेद ?

जावेद अख्तर ने खुद स्वीकार किया है कि उनके पिता (जान निसार) और मां (सफिया) के बीच रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं थे. इसका असर जावेद पर भी पड़ा. जावेद की मानें तो पिता जान निसार और सफिया की शादीशुदा जिंदगी सिर्फ 9 वर्ष की रही. इन 9 सालों के दौरान भी ज्यादातर समय दोनों जुदा ही रहे. 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के कमला अस्पताल में जन्मे जावेद अख्तर का असल नाम क्या है? इसके पीछे भी रोचक किस्सा है. जन्म के बाद दोस्त पिता जान निसार से मिलने आए तो पूछा गया कि अपने बेटे का क्या नाम रखोगे? दोस्तों ने याद दिलाया कि सफिया से शादी के दौरान जान निसार ने एक नज्म कही थी. इसमें एक मिसरा था- ‘लम्हा लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’. दोस्तों ने सलाह दी कि इस लड़के का नाम जादू रख दिया जाए. जावेद को 4 साल की उम्र तक इसी नाम से पुकारा गया. स्कूल में नाम लिखने की बारी आई तो इस नाम को लेकर कई लोगों ने आपत्ति जताई. इस पर उनका नाम जादू से जावेद हो गया. जावेद अख्तर को उनके करीबी और रिश्तेदार अब भी जादू नाम से ही बुलाते-पुकारते हैं.

‘सिलसिला’ अब तक जारी

‘त्रिशूल’, ‘दोस्ताना’, ‘सागर’, ‘जंजीर’, ‘काला पत्थर’, ‘मशाल’, ‘मेरी जंग’ और ‘मि. इंडिया’ जैसी कामयाब फिल्में लिखने वाले जावेद अख्तर ने सलीम खान के साथ मिलकर एक कामयाबी पारी खेली. 1987 में किन्हीं वजहों से दोनों की जोड़ी टूट गई. इसके बाद यश चोपड़ा की चर्चित और कामयाब फिल्म ‘सिलसिला’ के साथ बतौर गीतकार जावेद अख्तर ने एंट्री मारी. इस फिल्म के सभी गीतों ने कमाल कर दिया. इसके सारे गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं. कहा जाता है कि यश चोपड़ा ने जावेद अख्तर को ‘सिलसिला’ फिल्म में गाने के लिखने के लिए काफी समय तक मनाया था. काफी मनाने के बाद जावेद अख्तर माने और गीत लिखे वह भी कमाल के. यह अलग बात है कि इस फिल्म का सबसे पॉपुलर होली सॉन्ग ‘रंग बरसे, भीगे चुनर वाली’ कवि हरिवंश राय बच्चन ने लिखा और गाया है अमिताभ बच्चन ने. यह फिल्म कॉमर्शियल के साथ-साथ म्यूजिकल के स्तर पर भी काफी कामयाब रही. इसके बाद जावेद अख्तर ने ‘तेज़ाब’, ‘1942: अ लव स्टोरी’ ‘बॉर्डर’ ‘लगान’ ‘मैं हूं ना’ ‘जश्न-ए-बहारा’ ‘दिल धड़कने दो’ ‘साज़’ ‘गॉडमदर’ ‘रिफ़्यूजी’ ‘नमस्ते इंग्लैंड’ ‘गली बॉय’ ‘पंगा’ ‘सेनोरिटा’ जैसी फिल्मों में बेहद खूबसूरत गीत लिखे और लोगों ने पसंद भी किए.

सलीम खान से जोड़ी बनाकर लिखीं कई फिल्में

जावेद अख्तर के पिता जानिसार अख्तर बड़े शायर थे. एक बार जावेद अख्तर ने खुद कबूला था कि उनके सात पीढ़ियां शायरी करती आई थीं. उनके पिता जानिसार शायर होने के साथ मशहूर गीतकार भी थे. ऐसे में जावेद ने तय किया था कि वह शायर तो कतई नहीं बनेंगे. लिखने का शौक था तो बड़े हुए तो सलीम खान के साथ जोड़ी बनाई. 1970 और 80 के दशक में कई यादगार और लोकप्रिय फिल्में दीं, जिसमें ‘शोले’ का नाम खास है. कहा जाता है कि सलीम खान फिल्म की कहानी का आइडिया देते थे और जावेद अख्तर उसे रूप देते थे. जावेद को डायलॉग लिखने का जबरदस्त शौक था.

कभी नहीं बनी पिता से

जावेद अख्तर की अपने शायर पिता जान निसार से कभी नहीं बनी. उन्होंने अपने पिता को गैर जिम्मेदार तक कहा था. उन्होंने खुद कबूल किया कि उनके पिता जान निसार कमाल के शायर थे. साथ यह भी कहा था कि एक कलाकर कई दूसरे मामलों में गैर जिम्मेदार हो जाता है. इस लिहाज से वह भी थे. जावेद ने खुद स्वीकारा है कि पिता ने एक बार उनसे कहा था कि मुश्किल जबान में लिखना बहुत आसान है, लेकिन आसान जुबान में लिखना बहुत मुश्किल. जावेद अख्तर का कहना है कि उनके पिता जान निसार की शायरी में बहुत कम मुश्किल अलफाज आते थे, लेकिन उनका शब्दकोष बहुत बड़ा था. 18 अगस्त, 1976 को जांनिसार अख़्तर दुनिया से विदा हो गए. लेकिन दुनिया को अलविदा कहने से 9 दिन पहले उन्होंने अपनी आख़िरी किताब ऑटोग्राफ़ करके दी थी. जावेद अख्तर के मुताबिक, इस पर लिखा था- ‘जब हम न रहेंगे तो बहुत याद करोगे’. वर्ष 2024 में एक निजी टेलीविजन के कार्यक्रम में कहा था कि नफरत की उम्र अधिक नहीं होनी चाहिए. जब वह शख्स ही नहीं रहेगा तो नफरत किससे करोगे.

About the Author: JP Yadav
जेपी यादव डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह प्रिंट और डिजिटल मीडिया, दोनों में समान रूप से पकड़ रखते हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, लाइव टाइम्स, ज़ी न्यूज और भारत 24 जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कई बाल कहानियां भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. मनोरंजन, साहित्य और राजनीति से संबंधित मुद्दों पर कलम अधिक चलती है। टीवी और थिएटर के प्रति गहरी रुचि रखते हुए जेपी यादव ने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक 'गागर में सागर' और 'जज्बा' में सहायक लेखक के तौर पर योगदान दिया है. इसके अलावा, उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'चिराग' में अभिनय भी किया है।
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