Myopia in Children : अगले तीन दशक में मायोपिया से करोड़ों बच्चे हो जायेंगे प्रभावित, स्टडी

Myopia in Children : अगले तीन दशक में मायोपिया से करोड़ों बच्चे हो जायेंगे प्रभावित, स्टडी

Authored By: स्मिता

Published On: Friday, September 27, 2024

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

myopia in children
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बच्चों में पढ़ने-लिखने के अलावा कंप्यूटर/वीडियो गेम का उपयोग, टेलीविजन देखना मायोपिया की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण जोखिम कारक माना गया। बाहरी गतिविधियों या बाहर बिताया गया समय एक दिन में 2 घंटे से बहुत कम होना भी मायोपिया की प्रगति के कारक बने।

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Thursday, May 1, 2025

ऑप्थैल्मिक एंड फिजियोलॉजिकल ऑप्टिक्स जर्नल और ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ ऑप्थैल्मोलॉजी में प्रकाशित शोध निष्कर्ष के अनुसार, दुनिया भर के बच्चों के साथ-साथ भारतीय बच्चों के मायोपिया यानी दूर दृष्टि कमजोर होने की बीमारी कई गुना बढ़ गई है। तमिलनाडु के शंकर नेत्रालय तमिलनाडु एस्सिलोर मायोपिया (एसटीईएम) संस्थान ने दक्षिण भारत के कई शहरी और उपनगरीय स्कूली बच्चों में मायोपिया की व्यापकता पर अध्ययन किया। इसके निष्कर्ष बताते हैं कि पिछले 3-4 सालों में बच्चों में मायोपिया कई गुना बढ़ गया है। आंकड़े बताते हैं कि अगले तीन दशक में विश्व में 74 करोड़ से अधिक बच्चों की नजरें खराब हो जाएंगी। दिल्ली में भी स्कूल जाने वाले बच्चों में मायोपिया की प्रगति से जुड़े कारकों का मूल्यांकन किया था। इसमें भी स्क्रीन टाइम अधिक होने को जिम्मेदार माना (Myopia in Children) गया।

ज्यादा स्क्रीन टाइम कैसे खराब कर रही आंखें (Screen time for eye problem)

इन दिनों ऑनलाइन क्लासेज, यू ट्यूब पर लर्निंग क्लासेज का चलन काफी बढ़ गया है। इसके कारण फोन, लैपटॉप, किंडल आदि जैसे गैजेट पर बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। 5-6 घंटे तक लगातार स्क्रीन देखते रहने से बच्चों के रेटिना प्रभावित हो सकते हैं। आंखों की रोशनी घट सकती है। इसके कारण भारतीय बच्चों में मायोपिया या निकट दृष्टिदोष तेज़ी से बढ रहे हैं। इसमें बच्चों को दूर की चीज़ें देखने में कठिनाई होने लगती है।

स्कूली बच्चों में मायोपिया पर अध्ययन (Study on Myopia in children)

दिल्ली में स्कूल जाने वाले बच्चों में मायोपिया की प्रगति से जुड़े कारकों का मूल्यांकन उत्तर भारत मायोपिया अध्ययन संसथान द्वारा किया गया। दिल्ली के शहरी स्कूली बच्चों में मायोपिया की प्रगति और उससे संबंधित कारक पर अध्ययन किया गया। इसमें 5 से 15 वर्ष की आयु के 10,000 स्कूली बच्चों को शामिल किया गया।

बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी की कमी

जब 97.3% कवरेज के साथ 9,616 बच्चों की दोबारा जांच की गई, तो 1 साल में मायोपिया -1.09 ± 0.55 के औसत डायोप्ट्रिक परिवर्तन के साथ मायोपिक बच्चों की बढ़ी हुई संख्या 3.4% थी। बड़े बच्चों की तुलना में छोटे बच्चों में मायोपिया की अधिक प्रगति देखी गई। पढ़ने-लिखने के अलावा कंप्यूटर/वीडियो गेम का उपयोग, टेलीविजन देखना मायोपिया की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण जोखिम कारक माना गया। बाहरी गतिविधियों या बाहर बिताया गया समय एक दिन में 2 घंटे से बहुत कम होना भी मायोपिया की प्रगति के कारक बने। शोधकर्ताओं के अनुसार, मायोपिया भारत में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है। यह कंप्यूटर और वीडियो गेम के उपयोग के साथ लंबे समय तक पढ़ने और स्क्रीन समय से जुड़ा हुआ है।

कैसे हो मायोपिया से बचाव (Prevention of Myopia)

ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ ऑप्थैल्मोलॉजी के अनुसार, एशियाई देशों के बच्चे घर से बाहर आउटडोर एक्टिविटी में बहुत कम समय बिताते हैं। स्कूली बच्चों में मायोपिया के विकास को रोकने के लिए आउटडोर एक्टिविटी जरूरी है। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में बच्चों में मायोपिया पर किये गए अध्ययन बताते हैं कि रोजाना दो घंटे से अधिक समय बाहर बिताने से बच्चों में भी मायोपिया के चांसेज घट गये। पारंपरिक अध्ययन भी बताते हैं कि घर से बाहर अधिक समय खर्च करने से बच्चों में मायोपिया की घटनाओं में कमी आई। नेचर जर्नल के लिए किये गए मेटा-एनालिसिस के अनुसार, प्रति सप्ताह बाहर बिताए गए प्रत्येक अतिरिक्त घंटे से मायोपिया विकसित होने की संभावना 2% कम हो गई।

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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