आरबीआई सर्वेक्षण: केंद्रीय योजनाओं से कमजोर हो रहा संघवाद

आरबीआई सर्वेक्षण: केंद्रीय योजनाओं से कमजोर हो रहा संघवाद

Authored By: सतीश झा

Published On: Sunday, December 22, 2024

RBI survey on central schemes
RBI survey on central schemes

आरबीआई की हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की वित्तीय योजनाओं के सहकारी संघवाद पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को उजागर किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र पोषित योजनाओं (सीएसएस) की अधिकता न केवल राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित कर रही है, बल्कि संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ भी है।

Authored By: सतीश झा

Updated On: Sunday, December 22, 2024

आरबीआई (RBI) की रिपोर्ट में पहली बार यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केंद्र की बड़ी-बड़ी आर्थिक योजनाएं राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता को बाधित कर रही हैं। ये योजनाएं राज्यों पर खर्च की दिशा और प्राथमिकताओं को लेकर दबाव बनाती हैं, जिससे वे अपनी स्थानीय जरूरतों के अनुसार योजनाएं लागू नहीं कर पाते।

वित्तीय दुष्परिणामों की चेतावनी

केंद्रीय बैंक ने केंद्र पोषित योजनाओं के दूरगामी वित्तीय दुष्परिणामों की बात करते हुए सुझाव दिया है कि इन योजनाओं में समायोजन किया जाना चाहिए। इससे न केवल राज्यों को राहत मिलेगी, बल्कि केंद्र सरकार के वित्तीय बोझ को भी कम किया जा सकेगा। कई राज्यों ने केंद्र पोषित योजनाओं के खिलाफ पहले भी सवाल उठाए हैं। 2016 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के एक उप-समूह की सिफारिशों के आधार पर सीएसएस की संख्या को 30 तक सीमित करने की बात स्वीकार की थी। इसके बावजूद, वर्तमान में सीएसएस की संख्या बढ़कर 75 हो गई है, जो सिफारिशों के विपरीत है। संघीय ढांचे के तहत भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों और जिम्मेदारियों का संतुलन बनाए रखना संवैधानिक आवश्यकता है। लेकिन आरबीआई के एक हालिया सर्वेक्षण ने बताया है कि केंद्रीय योजनाओं और वित्तीय निर्णयों के कारण भारत का संघवाद कमजोर हो रहा है।

आरबीआई सर्वेक्षण की मुख्य बातें

  • राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता में कमी: आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों पर केंद्रीय योजनाओं और उनकी शर्तों का बढ़ता दबाव उनकी वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित कर रहा है। कई केंद्रीय योजनाएं ऐसी हैं जिनमें राज्यों का हिस्सा अधिक है, लेकिन उनकी प्राथमिकताएं नजरअंदाज की जाती हैं।
  • केंद्र-राज्य राजस्व असंतुलन: वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लागू होने के बाद राज्यों की स्वतंत्र कराधान क्षमता कम हो गई है। केंद्र द्वारा मुआवजा भुगतान में देरी और अनिश्चितता ने राज्यों की वित्तीय स्थिति को और खराब कर दिया है।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाओं का बढ़ता दबाव: रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्र प्रायोजित योजनाएं (CSS) राज्यों के वित्तीय संसाधनों को बाधित कर रही हैं। इन योजनाओं में राज्यों को अपनी मर्जी से वित्तीय प्राथमिकताओं को तय करने की जगह केंद्र के निर्देशों का पालन करना पड़ता है।
  • कर्ज पर बढ़ती निर्भरता: केंद्र सरकार की तरफ से वित्तीय सहायता में कमी और कर्ज के बढ़ते स्तर ने राज्यों को वित्तीय संकट में डाल दिया है।

संघवाद पर प्रभाव

  • राज्यों की स्वायत्तता में बाधा: केंद्रीय योजनाओं की शर्तें और दिशानिर्देश राज्यों की जरूरतों और प्राथमिकताओं को कमतर आंकते हैं। यह संघीय ढांचे की मूल भावना के विपरीत है।
  • राज्यों की विकास योजनाओं पर असर: केंद्र की शर्तों के कारण राज्य अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार धन का उपयोग करने में असमर्थ होते हैं।
  • राजनीतिक संघवाद पर प्रभाव: केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार होने पर यह असंतुलन और बढ़ जाता है, जिससे संघवाद की भावना कमजोर होती है।

आरबीआई की सिफारिशें

  • राज्यों को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करना: राज्यों को अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार संसाधन आवंटन की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • GST मुआवजा तंत्र का पुनर्गठन: GST से जुड़े राजस्व नुकसान को कम करने के लिए मुआवजा तंत्र को अधिक पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाना चाहिए।
  • संविधान के संघीय ढांचे का सम्मान: केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों में संतुलन बनाए रखने के लिए संविधान के संघीय ढांचे का पालन किया जाना चाहिए।

आरबीआई की सर्वेक्षण रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि केंद्रीय योजनाओं और वित्तीय नीतियों के कारण भारत में संघवाद कमजोर हो रहा है। अगर केंद्र और राज्य सरकारें साथ मिलकर काम करें और वित्तीय संतुलन सुनिश्चित करें, तो संघीय ढांचे को मजबूत किया जा सकता है।

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है

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