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नवानगर के महाराजा दिग्विजय सिंहजी को पोलैंड के लोग क्यों कहते हैं ‘बापू’
नवानगर के महाराजा दिग्विजय सिंहजी को पोलैंड के लोग क्यों कहते हैं ‘बापू’
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Friday, August 23, 2024
Last Updated On: Friday, August 23, 2024
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पोलैंड में बने नवानगर के महाराजा दिग्विजय सिंहजी के स्मारक पर भी गए। पोलैंड में कई लोग इन्हें ‘बापू’ भी कहते हैं। आखिर क्या कारण है कि सात समुंदर पार भारत के एक महाराजा को इतना सम्मान प्राप्त है।
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Last Updated On: Friday, August 23, 2024
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी(PM Narendra Modi) दो दिवसीय पोलैंड यात्रा पर थे। आज रात वे वहां से यूक्रेन की राजधानी कीव के लिए रवाना हुए। पोलैंड में प्रधानमंत्री मोदी का जोरदार स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री इस दौरे के दौरान राजधानी वारसॉ में स्थित तीन स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने गए। इनमें से एक भारत के गुजरात स्थित नवानगर के महाराजा दिग्विजय सिंहजी (Maharaja Digvijay Singhji) के स्मारक पर भी गए। पोलैंड में कई लोग इन्हें ‘बापू’ भी कहते हैं। आखिर क्या कारण है कि सात समुंदर पार भारत के एक महाराजा को इतना सम्मान प्राप्त है।
पोलैंड के हजारों बच्चे हुए अनाथ
वर्ष 1939 में पोलैंड की धरती से ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। हिटलर और सोवियत संघ के स्टालिन ने सबसे पहले पोलैंड पर हमला किया। हिटलर और स्टालिन के हमले ने पोलैंड में बहुत तबाही मची। लाखों लोग बेघर हुए। हजारों की संख्या में पोलैंड के सैनिक मारे गए। वेल्स के इतिहासकार नॉरमन डेवीज ने अपनी पुस्तक ‘हार्ट ऑफ यूरोप’ (Heart of Europe) में लिखते हैं, पोलैंड से 20 लाख लोगों को ट्रेनों में भरकर यूनाइटेड स्टेट ऑफ सोवियत रूस (USSR) भेज गया। इनमें पोलैंड के सैनिकों के अनाथ बच्चे भी शामिल थे। वहां इन्हें कैद में रखा गया था। बताया जाता है कि कैद में करीब दस लाख लोग मार गए।
हिटलर का सोवियत संघ पर हमला
जुलाई 1941 को हिटलर ने सोवियत संघ पर भी हमला कर दिया। इस हमले के बाद सोवियत संघ में कैद पोलैंड के कैदियों का किस्मत बदला। खासकर अनाथ बच्चों के। सोवियत संघ ने पोलैंड के कैदियों को छोड़ दिया। कैद से आजाद होकर पोलैंड के हजारों नागरिक मध्य एशिया की ओर रुख किया।
अगस्त 1942 में 38 हजार (ज्यादातर महिलाएं और बच्चे) पोलैंड के शरणार्थी ईरान में शरण लिया। छोटे-छोटे बच्चों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गया था, वो कुपोषण के शिकार हो गए थे। इसलिए अनाथ बच्चों के लिए स्थायी ठिकाने की तलाश शुरू हुई।
बच्चों की दुर्दशा की जानकारी जाम साहब को मिली
मुंबई (तब बॉम्बे) में मौजूद पोलैंड के कॉन्सुलेट ऑफिस ने पोलैंड के शरणार्थियों की मदद करने का फैसला किया। कॉन्सुलेट के अधिकारी बानासिंकी और उनकी पत्नी कीरा भारत के राजपरिवारों को बच्चों की दुर्दशा के बारे में बताना शुरू किया। इसकी जानकारी गुजरात के नवानगर में जाम साहब यानी महाराज दिग्विजय सिंहजी रणजीत सिंहजी जडेजा को भी मिली। वे अनाथ बच्चों के बारे में जानकार बहुत दुखी हुए। जाम साहब ने अनाथ बच्चों की मदद करने का फैसला लिया। जबकि देश का ब्रिटिश राज ने इसके लिए कई सख्त शर्तें रख दी थी।
पोलैंड के अनाथ बच्चों के लिए घर बनाया गया
जाम साहब ने ब्रिटिश शासन की सभी शर्तों को पूरा कर अनुमति लिया। इसके बाद अनाथ बच्चों के लिए बड़ा घर बनाया गया। फिर पोलैंड के शरणार्थियों को ईरान से अफगानिस्तान होते हुए भारत लाया गया। महाराज ने जामनगर से करीब 25 किलोमीटर दूर 2 से 17 साल की उम्र वाले 500 अनाथ बच्चों को यहां रखा गया।
अनाथ बच्चों के लिए बनाए गए घरों में पहले से ही बच्चों के कपड़े, बिस्तर सहित सभी जरूरी सामान उपलब्ध कराया गया। पहले दिन बच्चों के स्वागत में महाराज दिग्विजय सिंहजी ने खास भोज दिया। उस भोज ने दिग्विजय सिंह ने बच्चों से कहा, ‘अब आप अनाथ नहीं हैं। आप नवानगर का हिस्सा हैं। आपके परिजन भले ही न हों लेकिन अब से मैं आपका पिता हूं।’
पोलिश कल्चर और भाषा (Polish Culture and Language) से जोड़े रखा
महाराज दिग्विजय सिंह ने बच्चों के स्वाद को ध्यान में रखते हुए खाना बनाने के लिए पोलैंड से खास शेफ बुलाया। यही शेफ बच्चों के लिए पोलैंड का भोजन बनाता था। बच्चों के लिए महाराज ने अपने गेस्ट हाउस में स्कूल खोला। इस स्कूल में पोलैंड के पुजारी फादर फ्रांसिजेक प्लूटा बच्चों को पढ़ाते थे। उस स्कूल में लाइब्रेरी थी। बच्चों को अपने देश जोड़े रखने के लिए लाइब्रेरी में पोलैंड के इतिहास से जुड़ी किताबें मौजूद थीं।
पोलिश चिल्ड्रन फंड की स्थापना
बच्चों की सुविधाओं में कभी कमी न होने इसके लिए महाराज ने पोलिश चिल्ड्रन फंड बनाया। महाराज दिग्विजय सिंहजी ने देशभर के करीब 80 राजाओं और रईसों से चंदा इकट्ठा किया। महाराज दिग्विजय सिंहजी नियमित तौर पर कैंप का दौरा करते थे। बच्चों के बीच प्रतियोगिताएं होती थी। और जीतने वाले बच्चों को सम्मानित किया जाता था। पोलैंड के ये अनाथ बच्चे महाराज दिग्विजय सिंहजी को प्यार से ‘बापू’ कहकर पुकारते थे।
पोलैंड के शरणार्थियों के लिए कैंप
पोलैंड के अन्य शरणार्थियों के लिए महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के करीब वलिवडे में रिफ्यूजी कैंप बनाया गया। यहां करीब 5 हजार पोलैंड के शरणार्थियों को रखा गया। पोलैंड के शरणार्थियों के लिए महाराज दिग्विजय सिंहजी ने बालाचड़ी में मौजूद अपने समर रेसिडेंस में 1000 घर बनवाए। उन्होंने अपने महल के एक हिस्से को भी शरणार्थियों के लिए खोल दिया।
पोलैंड का सर्वोच्च नागरिक सम्मान (Poland’s Highest Civilian Award)
विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पोलैंड आजाद हुआ। वर्ष 1948 तक ज्यादातर पोलिश नागरिक अपने देश लौट गए। इन लोगों ने ‘एसोसिएशन ऑफ पोल्स इन इंडिया 1942-48’ नाम का एक संगठन बनाया। पोलैंड के नागरिकों के लौटने के करीब 18 साल बाद नवानगर के जाम साहब का निधन हो गया। इसके बाद उन्हें पोलैंड के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कमांडर्स क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट’ दिया गया। दिग्विजय सिंहजी को श्रद्धांजलि देने के लिए पोलैंड की राजधानी वारसॉ में एक चौराहे का नाम ‘गुड महाराज’ रखा गया है। पोलैंड में महाराज के नाम पर 8 स्कूल और 2022 में डोब्री महाराज के नाम से ट्राम की शुरुआत की गई है।