Jagannath Rath Yatra 2025: कब से शुरू हो रही है यात्रा? जानें तारीखें और हर दिन के अनुष्ठान

Jagannath Rath Yatra 2025: कब से शुरू हो रही है यात्रा? जानें तारीखें और हर दिन के अनुष्ठान

Authored By: स्मिता

Published On: Wednesday, May 28, 2025

Last Updated On: Wednesday, May 28, 2025

पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 के दौरान सजाया गया रथ, सूर्यास्त के समय भक्तों की भीड़ के साथ.
पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 के दौरान सजाया गया रथ, सूर्यास्त के समय भक्तों की भीड़ के साथ.

Jagannath Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व वाली जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 27 जून 2025 से शुरू हो रही है. जानें जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की अन्य महत्वपूर्ण तिथियां और अनुष्ठान.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Wednesday, May 28, 2025

Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथ यात्रा को “जगन्नाथ पुरी यात्रा” के रूप में भी जाना जाता है. यह भारत के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में से एक है. यह भव्य आयोजन हर साल ओडिशा के पुरी में होता है. यह यात्रा भगवान विष्णु के एक रूप भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की होती है। आइये विस्तार से जानते हैं जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2025 के शुरुआत की तिथि और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों की प्रमुख तिथियों (Jagannath Rath Yatra 2025) के बारे में…

क्या है जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra)

स्कंद पुराण के अनुसार, यह यात्रा भगवान जगन्नाथ की बारह वार्षिक यात्राओं में सबसे महान है. जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक देवताओं का एक धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा का आयोजन है. मान्यता है कि गुंडिचा मंदिर उनकी मौसी का स्थान है. भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा तीन विशाल, नक्काशीदार, लकड़ी के रथों में यात्रा करते हैं, जिन्हें हजारों भक्त खींचते हैं. जो व्यक्ति इस यात्रा के दौरान रथों पर देवताओं को देखने का अवसर पाता है, उसे सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. माना जाता है कि उसके पाप क्षमा हो जाते हैं और उसे आशीर्वाद प्राप्त होता है.

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के अर्थ (Meaning of Jagannath Rath Yatra)

  • भगवान जगन्नाथ की अपने जन्म स्थान की यात्रा: गुंडिचा मंदिर को उनका जन्मस्थान और उनकी मौसी का स्थान माना जाता है. इस वार्षिक उत्सव में भगवान जगन्नाथ अपने जन्म स्थान मथुरा (गुंडिचा मंदिर को इसका प्रतीक माना जाता है) का दौरा करते हैं.
  • आत्मा के शुद्धिकरण का उत्सव: माना जाता है कि रथों को खींचने से आत्मा शुद्ध होती है और व्यक्ति अध्यात्म की ओर मुड़ता है.
  • एकता का उत्सव: इस उत्सव में कोई छोटा और कोई बड़ा नहीं रह जाता है. इसमें समाज के सभी वर्गों के लोग भाग लेते हैं. पुरी के राजा स्वयं छेरा पन्हारा अनुष्ठान (रथों की सफाई) करते हैं. इसका अर्थ है कि भगवान के सामने सभी समान हैं.

माना जाता है कि रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की मंदिर (स्वर्ग) से पृथ्वी तक अपने भक्तों से मिलने की प्रतीकात्मक यात्रा है.

रथ यात्रा 2025 की तिथियां और प्रमुख अनुष्ठान (Jagannath Rath Yatra 2025 Dates & Rituals)

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, यह यात्रा कई दिनों तक मनाई जाती है और इसमें कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान होते हैं.

  • अक्षय तृतीया (30 अप्रैल, 2025): यह अनुष्ठान रथ यात्रा की तैयारियों की औपचारिक शुरुआत है. अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर पुरी में भव्य रथ यात्रा उत्सव के लिए रथों का निर्माण शुरू किया जाता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए विशाल रथ बनाने के लिए लकड़ी के पहले लट्ठे लाने की परंपरा है.
  • स्नान पूर्णिमा (11 जून, 2025): इस दिन देवताओं को मंदिर से बाहर निकाला जाता है. उन्हें स्वर्ण कुएं से लाए गए 108 घड़ों के पवित्र जल से पवित्र स्नान कराया जाता है. इस आयोजन में भक्त देवताओं के दर्शन कर सकते हैं. स्नान के बाद देवताओं को ‘गज बेशा’ नामक विशेष वस्त्र पहनाये जाते हैं. उन्हें सजाया जाता है.
  • अनवासरा (13 जून – 26 जून, 2025): स्नान पूर्णिमा के बाद देवताओं को 15 दिनों के लिए अलग रखा जाता है.माना जाता है कि स्नान के बाद उन्हें ‘सर्दी लग जाती है’. उन्हें देखभाल और आराम की ज़रूरत होती है. यह वह समय भी है जब मंदिर जनता के लिए बंद रहता है और जब देवताओं का विशेष जड़ी-बूटी से उपचार किया जाता है.
  • गुंडिचा मरजाना (26 जून, 2025): वास्तविक रथ यात्रा से एक दिन पहले, गुंडिचा मंदिर को साफ किया जाता है और देवताओं के बैठने के लिए तैयार किया जाता है. यह अनुष्ठान ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हृदय को शुद्ध करने का तरीका है.
  • जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा (27 जून, 2025): हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 26 जून को दोपहर 01 बजकर 25 मिनट से होगी. वहीं, तिथि का समापन 27 जून को सुबह 11 बजकर 12 मिनट को जाएगा. इसलिए यह यात्रा 27 जून, 2025 से शुरू हो जाएगी और 5 जुलाई 2025 तक चलेगी. जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा के दौरान, देवताओं को बड़े-बड़े रथों पर बिठाया जाता है और फिर भव्य यात्रा शुरू होती है. रथों को हज़ारों भक्त गुंडिचा मंदिर तक खींचते हैं, जो लगभग तीन किलोमीटर दूर है. रथों को खींचने का यह कार्य पाप को मिटाने और आशीर्वाद लाने के लिए किया जाता है. जब देवता अपने रथों पर होते हैं, तो पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ अनुष्ठान करते हैं, जिसमें वे सोने की झाड़ू से रथ के चबूतरे को साफ करते हैं. इसका मतलब है कि भगवान का किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है.
  • हेरा पंचमी (1 जुलाई, 2025): मान्यता है कि देवताओं के गुंडिचा मंदिर में रहने के पांचवें दिन भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी लक्ष्मी उनसे मिलने आती हैं.
  • संध्या दर्शन (3 जुलाई, 2025): माना जाता है कि शाम के समय गुंडिचा मंदिर में देवताओं के दर्शन करना सबसे महत्वपूर्ण है. यदि कोई इस मंदिर में देवताओं के दर्शन करता है, तो यह दस वर्षों तक मुख्य मंदिर में देवताओं के दर्शन करने के बराबर है.
  • बहुदा यात्रा (5 जुलाई, 2025): देवताओं को गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर तक ले जाने के उत्सव को बहुदा यात्रा के रूप में जाना जाता है. रथों को वापस लौटते समय मौसी मां मंदिर में भी रोका जाता है और उन्हें ‘पोडा पिठा’ दिया जाता है, जो एक प्रकार का पका हुआ केक जैसा पकवान होता है.
  • सुना बेशा (6 जुलाई, 2025): बहुदा यात्रा के उत्सव के अगले दिन सुना बेशा के उत्सव के दौरान देवताओं को स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है.
  • अधरा पाना (7 जुलाई, 2025): अधरा पाना एक प्रकार का मीठा पेय है, जो विशेष रूप से रथ यात्रा के दौरान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवताओं को उनके रथों पर चढ़ाया जाता है. दूध, पनीर, चीनी और मसालों से तैयार किया गया यह पेय बड़े मिट्टी के बर्तनों में तैयार किया जाता है और फिर देवताओं को परोसा जाता है. पेय परोसने के बाद बर्तन तोड़ दिए जाते हैं, जिसका अर्थ है कि सब कुछ सबके लिए है। यह देवताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का कार्य है.
  • नीलाद्रि बिजय (8 जुलाई, 2025): यह अंतिम आयोजन है, जिसमें जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में देवताओं की स्थापना की जाती है. यह उत्सव का अंतिम आयोजन है. इसका अर्थ है कि देवता मंदिर में अपने उचित स्थान पर लौट आए हैं.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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