Lifestyle News
कल है गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2024), क्या हैं गुरु के आध्यात्मिक अर्थ
कल है गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2024), क्या हैं गुरु के आध्यात्मिक अर्थ
Authored By: स्मिता
Published On: Saturday, July 20, 2024
Last Updated On: Saturday, July 20, 2024
व्यक्तित्व निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं गुरु । गुरु ही हमें अच्छे-बुरे का एहसास कराते हैं और जीवन मूल्य सिखाते हैं। इसलिए गुरु पूजनीय हैं, वंदनीय हैं। गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करने के लिए हर वर्ष गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2024) है। इस अवसर पर जानते हैं गुरु के क्या हैं आध्यात्मिक महत्व?
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Saturday, July 20, 2024
हर व्यक्ति किसी ख़ास जीवन मूल्य से जुड़ा होता है, जिसका पालन वह जीवन भर करता है। व्यक्ति के मन और विचारों में यह जीवन मूल्य गुरु स्थापित करते हैं। हम सभी के जीवन में एक गुरु जरूर होते हैं। सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करने वाले गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा समर्पित करने के लिए हर वर्ष गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2024) मनाई जाती है। गुरु हमें अध्यात्म की ओर उन्मुख करते हैं, जिससे हमारा जीवन बेहतर होता है। इसलिए हमें गुरु के आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Importance of Guru) को समझना चाहिए।
कल है गुरु पूर्णिमा(Guru Purnima 2024)
इस वर्ष रविवार 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाई जा रही है। 20 जुलाई को शाम 5:59 बजे से पूर्णिमा तिथि (Purnima) शुरू हो रही है। यह 21 जुलाई को दोपहर 3:46 बजे समाप्त हो रही है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन वेद व्यास (Ved Vyas) की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि हिंदू महाकाव्य महाभारत की रचना वेद व्यास ने ही की थी। गुरु पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) ने अपने पहले 5 अनुयायियों को ज्ञान दिया था।
क्या हैं गुरु के आध्यात्मिक अर्थ (Spiritual meaning of Guru)
गुरु शब्द संस्कृत से आया है। इसका अर्थ अंधकार को दूर करने वाला या अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला होता है। गुरु सच्चे मार्गदर्शक हैं, जो शिष्यों को ज्ञान से प्रकाशवान कर उसे आध्यात्मिक यात्रा की ओर ले जाते हैं। कुछ आध्यात्मिक गुरु यहां इसके सही अर्थ बता रहे हैं।
हर इंसान में गुरु तत्व
आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर गुरु के आध्यात्मिक अर्थ बताते हैं, ‘गुरु वह है, जो व्यक्ति को ज्ञान और बुद्धि की ओर ले जाता है। व्यक्ति के अंदर जीवन शक्ति जगाता है। हर इंसान में गुरु तत्व होता है। जानबूझकर या अनजाने में जब भी किसी व्यक्ति ने किसी के लिए कुछ किया है और बदले में कुछ पाने की उम्मीद नहीं की है, तो उसने गुरु की भूमिका निभाई है।‘ गुरु अपने वचनों से हमें सत्संग और अच्छे विचारों की ओर मोड़ते हैं। अपने मन से सारी गंदगी को दूर करने और अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए हमें गुरु की शरण लेनी चाहिए ।
बीज को वृक्ष बनाते हैं गुरु
आध्यात्मिक गुरु मां अमृतानंदमयी के अनुसार, यदि बीज कहीं रखा रहे, तो वह सड़ सकता है। यदि यह कहीं गोदाम में पड़ा रहे, तो चूहे उसे खा जाएंगे। बीज को मिट्टी का साथ मिलते ही वह वृक्ष बन जाता है। मिट्टी के नीचे जाने पर ही उसका असली रूप सामने आता है। मिट्टी गुरु का प्रतीक है, जो बीज को पेड़ में परिणत कर सकता है। बीज की तरह हम नीचे गिरकर ही कालांतर में ऊपर उठकर पेड़ बन सकते हैं। केवल विनम्रता के माध्यम से ही हम ऊपर उठ सकते हैं। विनम्रता की सीख हमें गुरु ही देते हैं। हम अपने माता-पिता, बड़ों और शिक्षकों का सम्मान करते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं, तभी हम बड़े होकर ज्ञान प्राप्त कर पाते हैं। गुरु हमारे अंदर अच्छे गुणों और अच्छे व्यवहार का पोषण देते हैं।
गुरु का उद्देश्य विकास है
आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव गुरु के आध्यात्मिक अर्थ समझाते हुए बताते हैं, ‘ गुरु का उद्देश्य उन आयामों पर प्रकाश डालना है, जो उस समय तक व्यक्ति के अनुभव में नहीं होता है। गुरु का उद्देश्य व्यक्ति का विकास है, सिर्फ उसे सांत्वना देना नहीं।
गुरु का अर्थ है अंधकार, रु का अर्थ है दूर करने वाला – जो आपके अंधकार को दूर करता है वह गुरु है। गुरु की मूल भूमिका व्यक्ति की ऊर्जा को एक अलग संभावना में प्रज्वलित करना है। एक बार जब व्यक्ति गुरु के पास बैठ जाता है, तो उसके अंदर मोक्ष का बीज बोया जाना शुरू हो जाता है।
अप्रत्यक्ष प्रेम
दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा अपने शिष्यों से पूछती हैं, ‘घड़े गढ़ने वाले व्यक्ति को देखा है कभी? वह घड़े को गढ़ता है। ‘घड़े गढ़ने वाला व्यक्ति गुरु है और शिष्य घड़ा है। गुरु शिष्य को तैयार करते हैं। गुरु शिष्य को घड़े की तरह बनाते हैं, ताकि वह भरा जा सके। घड़ा बनाते हुए व्यक्ति भीतर से तो मिट्टी को सहारा देता है, लेकिन बाहर से चोट करता है। गुरु की प्रक्रिया भी यही तो है। वे भीतर से शिष्य को सहारा देते हैं और बाहर से चोट करते हैं। यदि व्यक्ति को भीतर का वह सहारा समझ में आ जायेगा, तो फिर बाहर की चोट भी प्रीतिकर हो जाएगी। केवल चोट अनुभव करेंगे, तो फिर वे भाग खड़े होंगे। व्यक्तित्व की मजबूती के लिए बाहर की चोट जरूरी है, अन्यथा व्यक्ति मजबूत नहीं हो सकेगा। जो व्यक्ति गुरु के इस प्रेम को समझ गया, वह गुरु के सही आध्यत्मिक अर्थ को भी समझ जायेगा।