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यमुना सफाई और प्रदूषण क्यों नहीं बनता चुनावी मुद्दा ?
यमुना सफाई और प्रदूषण क्यों नहीं बनता चुनावी मुद्दा ?
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, January 14, 2025
Updated On: Tuesday, January 14, 2025
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनहित के मुद्दे जैसे गौण हो रहे हैं. हाल के वर्षों में जातिगत समीकरण, धर्म और फ्री के मु्द्दे चुनावी भोपू पर खूब सुनाई पड़ते हैं. गरीबी, महंगाई मानो बीते जमाने की बात हो गई. दिल्ली विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. प्रत्याशी सुबह-शाम लोगों के घरों में हाथ जोड़े और सिर झुकाए चिरौरी करने जा रहे हैं. लेकिन, दिल्ली के लिए प्रदूषण की समस्या को लेकर किसी प्रत्याशी के पास समाधान नहीं है। कोई यमुना सफाई को लेकर बात नहीं करना चाहता है. मानो यह मौसमी समस्या हो और इस पर रोटी सेंकनी अभी कई वर्षों तक हो.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Tuesday, January 14, 2025
यमुना नदी की सफाई और प्रदूषण (Yamuna cleaning and pollution) का मुद्दा वर्षों से दिल्लीवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक समस्या रही है. बावजूद इसके, यह चुनावी मुद्दा उतनी प्राथमिकता नहीं पा सका, जितना इसे मिलना चाहिए. इसके पीछे कई कारण हैं: यमुना सफाई एक लंबी अवधि की प्रक्रिया है, जिसमें भारी संसाधनों और समय की जरूरत होती है. राजनेताओं को लगता है कि इस मुद्दे पर काम करने से तत्काल चुनावी लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि इसके परिणाम दिखने में समय लगता है. इसके विपरीत, बिजली, पानी, और स्वास्थ्य जैसी योजनाएं त्वरित और प्रत्यक्ष प्रभाव डालती हैं, जो मतदाताओं को तुरंत आकर्षित करती हैं.
यमुना का प्रदूषण व्यापक स्तर पर पर्यावरण और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, लेकिन इसका प्रभाव सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्तर पर नहीं दिखता, जिससे मतदाता इसे प्राथमिकता नहीं देते. स्थानीय मतदाताओं में इस मुद्दे को लेकर जागरूकता और सक्रियता की कमी के चलते यह चुनावी एजेंडा नहीं बनता. राजनीतिक दल उन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं, जो तुरंत वोट में तब्दील हो सकें, जैसे मुफ्त सेवाएं, रोजगार, और सुरक्षा. यमुना की सफाई जैसे मुद्दों पर ध्यान देने से लंबी योजनाएं और बजटीय आवंटन की जरूरत होती है, जो चुनावी घोषणापत्र में कम शामिल होती हैं. यमुना सफाई पर काम करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार, राज्य सरकार, और नगर निगम के बीच बंटी हुई है. राजनीतिक दल एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं, जिससे जवाबदेही तय नहीं हो पाती. जनता के सामने यह स्पष्ट नहीं होता कि आखिर दोषी कौन है और समाधान किसे देना चाहिए.
दिल्ली में चुनावी मुद्दे आमतौर पर बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, और महिलाओं की सुरक्षा जैसे विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं. यमुना सफाई जैसे पर्यावरणीय मुद्दों को द्वितीय श्रेणी का माना जाता है, क्योंकि वे सीधे वोटर के दैनिक जीवन से जुड़े नहीं दिखते। यमुना की सफाई के लिए उन्नत तकनीकों और बड़े निवेश की आवश्यकता है. सरकारें इस पर गंभीरता से काम करने के बजाय केवल घोषणाएं और योजनाएं पेश करती हैं, जो चुनाव के बाद अक्सर ठप हो जाती हैं. दिल्ली के कई नाले और सीवेज यमुना में गिरते हैं, जिन्हें रोकने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार की जरूरत है, जो चुनावी भाषणों में कम आंका जाता है. यमुना सफाई पर ध्यान देने के बजाय, राजनेता और सरकारें प्रतीकात्मक गतिविधियों जैसे जागरूकता अभियान, घाटों की सफाई, और पूजा सामग्रियों को एकत्रित करने तक सीमित रहती हैं. ये कदम समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं देते, लेकिन चुनाव के समय सुर्खियां बटोरने के लिए पर्याप्त होते हैं.
ऐसे में दिल्ली मतदाताओं को यह मान लेना चाहिए कि यमुना सफाई और प्रदूषण का मुद्दा चुनावी एजेंडे पर तभी आएगा, जब जनता इसे प्राथमिकता देगी और राजनैतिक दल इसे अपनी जिम्मेदारी समझेंगे. यह न केवल दिल्ली, बल्कि पूरे देश के पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है कि यमुना को बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं.
यमुना सफाई में अब तक हुआ खर्च
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच यमुना की सफाई के लिए विभिन्न विभागों को 6856.9 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई. 2015 से 2023 की पहली छमाही तक केंद्र सरकार ने दिल्ली जल बोर्ड को यमुना की सफाई के लिए लगभग 1200 करोड़ रुपये प्रदान किए, जिसमें से 1000 करोड़ रुपये नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत और 200 करोड़ रुपये यमुना एक्शन प्लान-3 के तहत दिए गए। आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद यमुना की सफाई पर 700 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. जल शक्ति मंत्रालय ने अपने बयान में दावा किया कि उसने 11 परियोजनाओं पर काम करने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार को 2361.08 करोड़ रुपये आवंटित किए.
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